Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 65
________________ • जाहिर उदघोषणा नं. ३. ६३ वस्त्रमें पैशाबके शंटे लगकर वस्त्र गीला रहने परभी 'सूत्र' पढतेहैं यह सब कार्य सूत्र विरुद्ध होनेसे प्रत्यक्ष दोष लगताहै और ज्ञानावर्णीय बड़ेभारी कर्म बंधनहोतेहैं ॥२०॥ - यदि कोई कहेगा कि पैशाबसे गुदा धोकर शुचि कर लेगें तो फिर . अशुचि न रहेगी, यहभी सर्वथा अनुचितहै क्योंकि विष्टाकी तरह पैशाबभी अशुचिहै जिससे निशीथः सत्रमें जलसे पैशाबकी शुचि करनेका लिखाहै इसलिये पैशाबसे गुदाकी शुचि करने वाले या शुचि करनेका मानने वाले सब दोषके भागी हो कर प्रत्यक्ष अशुचि रहतेहै और समा. जकी अवज्ञा करवाने रूप जिनाज्ञाकी विराधना करते हुए लोगोंके व निजके मिथ्यात्वका हेतु भूत दुर्लभ बोधिका कारण बनतेहैं ॥ २१॥ इत्यादि अनेक दोषोंसे छुटनेका सरल उपाय तो यहीहै कि खूब तपस्या करो और तपस्याके पारणेमें भी सिर्फ दिनभरमें एकवार लूखा सूखा थोडा आहार व थोडा जल पीकर संतोष रखलो, उससे जटरा अग्नि बहुत तीव्र रहेगी, मंदाग्निका कोई रोग न होगा, तथा शामतक १-२ वार पैशाबभी हो जावेगा, दिनमेंही जंगल जाकर सब निपटलो और रात्रिमें ध्यानमें खड़े रहो, उससे रात्रिभर जंगल व पैशाब कुछभी न आवेगा, जिससे रात्रिम जल रखनेकी भी जरुरत न रहेगी, परंतु स्वाद के लिये, पुष्टिके लिये दिनभरमें २-३ बार माल मसाले मीठाई आदि खावोगे; ५-१० वार खूब जल पीवोगे फिर रात्रिमें जल रखनेका, इनकार करोगे यह कभी नहीं बन सकता, इस बातको विशेष तत्त्वज्ञ पाठक गण आपही विचार सकतेहैं। ( झूठे हठको छोड़ो व्यर्थ निंदा मत करावो ) ६६. प्रिय पाठकगण ढूंढिये व तेरहापंथी साधु रात्रिमें जल नहीं रखते फजरमें सूर्यका उदय होतेही जंगलके लिये जातेहैं तब यद्यपि कभी जल लेकर जाते होवें तोभी लोगोंमें शंकास्पद ऐसी बात फैली हुईहै कि सायत् पैशाब लेकर जाते होंगे या लोक दिखाउ खाली पात्र को ढककर ले जाते होंगे और वहांपर कदाचित पैशाबसे शुचिकरते होगे ऐसी अफवाह फैली हुई होनेसे मुसल्मान वगैरह कभी कोई ढूंढिया वा तेरहापंथी साधु जंगल बैठा हो वहां पत्थर फैकतेहैं, कोई गुप्तपने पहिले सेही दूरके झाडपर चढकर चेष्टा देखते रहतेहैं फिर पिछाडीसे निंदा करतेहैं और पंजाब, मारवाड़, मेवाड, दक्षिण, बराड देशमें अमरावती

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