Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 66
________________ जाहिर उदघोषणा नं० ३. वगैरह बहुत जगह रात्रिजल न रखने व पैशाब से व्यवहार करने बाबत विवाद चल चुका है, निंदास्पद लज्जनीय झगडा भी हो चुका है, हैंडबिले, विज्ञापने, तथा किताबें भी छपी हैं, विरोधभाव कलेश से हजारों रुपये भी खर्च होचुके व होते भी हैं, इत्यादि व्यर्थ निंदा-झगडा होकर लोगोंके कर्म बंधन होते हैं, ढूंढिये व तेरहपंथी समाजकी हिलना, अवज्ञा व भ्रष्टताका आरोप वगैरह अनेक अनर्थ हुएहैं व होते भी हैं इसलिये ढूंढिये व तेरहापंथी सर्व साधु-साध्वियोंको मेरा खास आग्रह पूर्वक यही कहना है कि रात्रिमें साधुको जल पीनेके लिये रखनेकी मनाई है परंतु शरीर की शुचि के लिये रखने की मनाई किसी सूत्र में नहींहै इसलिये झूठे हठको त्याग करके रात्रिमें जल रखनेका शुरुकरके उपर मुजब अनेक अनर्थों की जडकोही उखाड डालना उचित है । ६७. ढूंढिये लोग ऊपर मुजब अपने अनेक दोषोंको छुपाने के ● लिये प्रतिक्रमण सूत्रके नामसे संवेगियोंपर मूत पीनेका आरोप रखते हैं, यहभी प्रत्यक्ष झूठ है क्योंकि देखो - 'प्रतिक्रमण' सूत्रमें पञ्चक्खाण भाष्यकी इस प्रकार की गाथा है: "असणे मुग्गोयण सत्तु, मंड पय खज रब्ब कंदाइ || पाणे कंजिय जव कयर, कक्कडोदग सुराइ जलं ॥१४॥ खाइमे भत्तोस फलाइ, साइमे सुठि जीर अजमाई ॥ महु गुड तंबोलाइ, अणाहारे मोय निंबाई ||१५|| दारं ॥ ३ ॥ ” ६८. इन दो गाथाओंमें असनं, पानं, खाइमं, साइमं व अनाहार बस्तुओंका स्वरूप बतलाया है, उसमें सर्व प्रकार के अनाज ( धान्य ) मीठाई, दूध, दही, घृत, तेल, मक्खण व 'कंदाइ' कहनेसे आलू, कांदे, सुरणकंद, गाजर, मूले, शकरकंद, इत्यादि इन से पेट भरता है, क्षुधा शांत होती है, जिस से यह सब अशनमें गिने हैं । नदी, तलाब, समुद्र व कांजीका जल, छाछकी आछ, यव-करे. द्राक्ष आदिका धोवण तथा मदिरा, ताडी वगैरह पीनेके काम में आते हैं, जिससे पानी में गिनें हैं । आंब, केले. शीताफल आदि फल व द्राक्षादि मेवा, खांड, शकर, खजूर वगैरह अनाज से थोडी क्षुधाशांत करनेवाले होनेसे खादिममें गिने हैं । सुंठ, जीरा अजमान, पीपर, काली मरिच, पीपरामूल, इलाइची, लौंग आदि मुखवासकी वस्तु स्वादिममें गिनी हैं । यह चार प्रकार की सब वस्तु बहार में गिनने में आती हैं । और अनाहार में गौमूत्रादि पैशाब,

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