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जाहिर उद्घोषणा नं०३. इसलिये रात्रिमें जलसे भी शुचि नहीं करते, जिसपरभी ठाणांग सूत्रके नामसे शुचि करनेका ठहराना यहतो प्रत्यक्षही भोले जीवोंको बहकाकर अपनी भूलका बचाव करनेकी प्रपंच बाजीहै।
५९. ढूंढिये कहते हैं कि बृहत्कल्प सूत्र में और व्यवहार सूत्र में मूत्र लेनेका लिखाहै, इसलिये हमभी कभी काम पडजावे तो उससे अपना काम कर लेते हैं यहभी बड़ी भूलहै. क्योंकि देखो जिसतरह किसी एक ब्राह्मण-बनियेको मरणांत कटवाले बडेभारी रोगके महा
कारण विशेषसे किसी तर्क बुद्धिवाले अनुभवी वैद्यने किसी तरहकी कोई अपवित्र वस्तुकी दवाई देकर उस समय उसका जीव बचालिया तो उसकी देखादेखी निरोग अवस्थामें वह ब्राह्मण, बनीया या उनकी सर्व जातवाले उस अपवित्र वस्तुको हमेशाके लिये अपने काममें कभी नहीं लासकते तथा यह बाततो अभी प्रसिद्धहीहै कि कई डाक्टर सर्प काटने वगैरहके जहर उतारनेके लिये रोगीको दवाई रूपमें मूत्र पीला तेहैं परंतु उनकी तरह सर्व मनुष्य मूत्र पीनेवाले नहीं बन सकते और उससे मूत्रको पवित्रभी कभी नहीं मान सकते । इसी तरहसे सर्प आदिके काटने के जहर वगैरह मरणांत कष्टवाले महान् कारण विशेष से साधुका जीव बचानेके लिये वैद्यकी सलाहसे दवाई रूपमें मूत्र लेने का काम पडे तो ले सकते हैं इसलिये वृहत्कल्प सूत्र में ऐसे गाढे कारण से लिखाहै जिसपर भी कितनेहीं ढूंढिये व तेरहापंथी लोग इस बात का भावार्थ समझे बिना निरोग अवस्थामें रात्रिको शरीर शुचिके लिये जल न रखकर मूत्रको शुद्ध समझकर दस्त लगनेपर मूत्रसे व्यवहार करतेहैं यही उनकी बड़ी अनसमझकी निर्विवेकताहै।
६० यदि कोई कहे कि हमारे भी कभी रात्रिमें अकस्मात दस्त होने का महान् कारण होजावे तो मूत्रका उपयोग करलें तो उसमें कोई दोष नहींहै, यहभी बड़ी भूल है क्योंकि दिनभरमें दो तीन बार खूब पेट भरके रोटी-शाक और मीष्टान वगैरह खाने वालेको रात्रिमें दस्त लग. ना यह महान्कारण नहीं किंतु स्वाभाविक नियमकी बात है इसलिये एसे पेटभरने वाले टुंढिये; तेरहापंथी साधु-साध्वियोंको रात्रि में शरीर की शुचिकेलिये जल रखनेकी खास आवश्यकताहै जिसपरभी जान बुझकर रखते नहीं और कितनेक रात्रिमें दस्त होनेका महान्कारण मानकर मूषका व्यवहार करलेतेहैं यह सर्वथा जिनामा विरुद्ध, जैनशास्त्र विरुद्ध