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___जाहिर उद्घोषणा नं० ३. का या बहुत दस्तहोनेका बहाना बतलाकर हमेशा सर्वथा जल नहीं रखनेका या अशुचि रहनेका ठहराना बड़ी अज्ञानता है। "
५७. फिरभी देखिये-ढूंढियोंमें किसी श्रावक या श्राविकाने दीक्षा ली होवे परंतु कर्मगतिसे साधुपनेसे पीछे भ्रष्ट हो जावें उनको देखकर कोईभी दूसरे दीक्षा न लें, यह नहीं होसकता तथा किसी गृहस्थने द्रव्यप्राप्तिकी इच्छासे व्यापार किया परंतु अकस्मात घाटा लग गया तो उसको देखकर सबलोग व्यापार करना नहीं छोड़ सकते. इसी तरहसे कभी अकस्मात किसी साधुके सब जल दुल जानेका किसी तरहसे मान लिया जावे तोभी उसको देखकर सब दूंढिये साधु हमेशा रात्रिको कभी जल न रखें और दस्त लगनेपर जान बुझकर अशुचिरहें यह कितनी भारी अज्ञानताहै तथा यह बात सबके अनुभव कीहै कि रोगादि कारणसे किसी साधुको बहुत दस्त होजावे, वस्त्र या शरीर भरजावे, उठनेकी शक्ति न होवे तो दूसरे साधु उसके वस्त्र व शरीरकी शुचिकी व्यवस्था करतेहैं । इसी तरह ढूंढिये साधुओंको रात्रिमें दस्त होने पर उनकी शुचिके लिये फजरमें जल लाकर शुचिकरवानेकी दूसरे साधु व्यवस्था नहीं करते इसलिये बहुत दस्त होने का बहाना बतलाकर रात्रिको सर्वथा जल नहीं रखनेका ठहराना मनुचितहै।
५८. ढूंढिये कहतेहैं कि "द्राणांग" सूत्रके पांचवें ठाणेके३ उद्देशमें पांच प्रकारकी शुचि लिखीहै उस मुजब हमको जब रात्रिमें दस्तलगें तब शुचि करलेते हैं, यहभी कपट क्रियाहै क्योंकि वहांपर मट्टी, जल, अग्नि व मंत्रसे चार प्रकार की बाह्य और ब्रह्मचर्यसे पांचवी अंतर शुचि कहीहै । अब विचार करना चाहिये कि अग्नि, मंत्र व ब्रह्मचर्यसे दस्त होने पर गुदा की शुचि नहीं होती यह प्रसिद्ध बात है तथा जो मट्टीसे शुचि करनेका लिखाहै सोभी गृहस्थलोग वर्तनोंको मांजकर साफ करते हैं व दुर्गधकी जगह रगड़तेहैं इस अपेक्षासे व्यवहारकी बात बतलायीहै इससे दस्त होने पर अकेली मट्टीसे गुदाकी शुचि नहीं होसकती. देखो मारवाड़ आदिमें बालकलोग खेलनेके लिये बाहर जाते है वहांपर जंगल होकर धूलमें गांड घिसणी करते हैं उससे पूरी सफाई नहीं होती जिससे फिर घरमें आकर जलसे धोतेहैं परंतु साधु को वैसा करना योग्यनहीं है और इंडिये साधु रात्रि में जल रखते नहीं