________________
५४
जाहिर उद्घोषणा नं० ३....----- खना योग्य नहीं है, यहभी अनसमझकी बातहै. क्योंकि जिसप्रकार दिन में किसी दूंढियसाधुके चौविहार उपवासमें कभी उल्टीहोजावे तो १०५बार थूक चूंक कर मुंह साफ कर लेताहै परन्तु मुंहमें जल नहीं डालता. उसी प्रकार साधुको रात्रिमें मुंहमें जल डालनेका त्याग होताहै उससे मुंहमें जल नहीं डालता और १०-५ बार यूंककर मुंह साफ कर लेताहै, इसलिये रात्रिमें उल्टीके समय मुंहमें जल डाले बिनाभी काम चल सकताहै और फजरमें जलसे मुंहकी शुद्धि होसकतीहै, परन्तु रात्रिमें दस्त लगनेपर विष्टासे गुदा भर जातीहै । देखो जैसे २ मुंहमेंसे यूं कोगे, वैसे २ मुंह साफ होता चला जावेगा परन्तु दस्त तो जैसे २ पेटमें से निकलेगी वैसे २ गुदा खराब होती चली जावेगी जिससे वमनकी तरह दस्तमें जल बिना काम नहीं चल सकता इसलिये शरीरकी शुचि के लिये रात्रिमें जल रखनेकी खास जरूरत पडतीहै।
५२. काठीयाघाड, दक्षिण वगैरह देशोंमें फिरने वाले कोई २ ढूंढिये साधु रात्रिमें जल रखने लगगयेहैं और अन्य सव ढूंढियोंकोभी रखने के लिये शास्त्र प्रमाण व युक्ति पूर्वक आग्रह करतेहैं । ढूंढिये साधु रीखजी रीखरामजी' का बनाया हुआ "सत्यार्थसागर" पुस्तकके पृष्ठ ४३८ से ४४० तकका लेख नीचे मुजबहैः
"प्रश्नः-साधु-साध्वी लघुनीत, बडीनीत होकर शुचि न करे तो प्रायश्रित होय के नहीं ?
उत्तरः-प्रायश्चित होय 'निशीथसूत्र के चौथे उदेशेमे कह्याहै यत पाठा-(जे भिखु उच्चार पासवणं परिठवित्ता णायमई, णयमंतं वा साइजई॥) अर्थः-जो कोई साधु-साची दिशा मात्रा फिरकर पाणीसे शुचि न करे तो प्रायश्चित होय. तो साधु-साध्वी रोगादि कारण विशेष जामकर शरीर शुचिके वास्ते रात्रिको गख मिलाकर पाणी शरीर शुचि के वास्ते राखे तो कोई साधुका महाव्रत नहीं जाताहै, क्योंकि वडीनीत-लघुनीतकी दुर्गधि जहांतक होगी, तहांतक सूत्र पढना मनाई है
और प्रभात कालका प्रतिक्रमण कैसे करे और व्याख्यान सूत्रका कैसे करे, जो शुचिशरीर न होय तो असिज्झाई रहे, जब असिज्झाई सूत्र में टालनी कही है. तथा कोई ऐसा कहे सूत्र में पाणी कहां रात्रिको रखना लिख नहीं परन्तु सूत्रों में कारण विशेष तो जंगह जगह लिखेहैं, तो यह