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- जाहिर उद्घोषणा नं० २. ढोंगहै.मोक्षकी इच्छावालेको ऐसा झूठाढोंग त्याग करनाही हितकारीहै।
४४. भगवती, ज्ञाताजी, उपासकदशा, अंतगडदशा, अनुत्तरो ववाई, प्रश्नव्याकरण, उत्तराध्ययन, ओघनियुक्ति, प्रवचनसारोद्धार आदि बहुत शास्त्रोंमें साधुको गौचरी जाने के समय अपने पात्रोंको ढकने के लिये झोलीके ऊपर वस्त्रके पडले रखनेका कहाहै, उससे अनेक लाभ होतेहैं, इसलिये संवेगी साधु रखते हैं. परन्तु ढूंढिये साधु नहीं रखते जिससे अनेक नुकसान होतेहैं, सो बतलातेहैं । जब ढूंढिये साधु बाजारमें या गलियोंमें लंबी नीचे लटकती हुई खुली झोली में आहार-पानी लेकर जाते हैं तब कभी उसमें हवासे सचित्त रज गिर जातीहै १, अकस्मात वर्षाके जलकी बिंदुभी गिरजातीहैं २, कभी अधिक हवाके जोरसे अंबली, लींब, बड आदिके पत्र, पुष्प, फल वगैराभी गिरजातेहैं ३, कभी गृहस्थलोग वर्तनोंका झूठा मैला जल अपने मकानके ऊपरसे गली में फेंकते होवें उससमय ढूंढिया साधु उस रास्ते होकर जाता होवे तो उसमेंसे जलके छांटे कभी आहार-पानी आदि पर गिरजातेहैं ४, कभी लोग मुर्देको ले जाते हो तो उसकी छाया आहारादि पर गिरजातीहै ५, आकाश में चिल्ल कौवा आदि यदि उडतेहुए विष्टा करदें तो उसके छांटेभी आहारपर गिरजातेहै ६, मणीयारे वैपारियोंकी तरह ढूंढिये साधुभी मीठाई, रोटी, शाक, दूध दही, घृत, गुड, शकर आदि आहारके सब पात्रे गृहस्थोंके घर २में अलग २ रखदेते हैं, उनको देखकर बालक खाने के लिये रोने लगते हैं, न देनेपर दुःस्त्री होते हैं, कभी मांगनेवाले रांक देखकर लोभातेहैं न मिलनेसे अंतराय बंधताहै ८, कभी कुत्ता बिल्ली आदि खानेके लोमसे झपाटा मारदेते हैं ९, कभी दाल, कढी, क्षीर, घृत वगैरह झोली में दुलजावें, झोली बिगड जावे तो रास्तामें लोग देखकर हंसी करतेहैं, उस से जैन शासनकी हिलना होतीहै १०, गरीष्ट पुष्टिकारक आहार देखकर देखो कैसा माल उडातेहैं इत्यादि निंदा होतीहै ११, निरस आहार देखकर देखो कैसा खराब आहार साधुको दिया है ऐसी देने वालोंकी निंदा होतीहै १२, वर्षा के बिंदु आदि आहार पानीमें गिर. गये होवें वैसा आहार साधुको खाना कल्पता नहींहै उसको परठवना पडे उसमें अनेक तरह की जीवोंकी विराधना होतीहै १३, इत्यादि अनेक तुकसान होतेहैं इसलिये यहभी जिनामा विरुद्ध और छ कायकी हिंसा