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• जाहिर उद्घोषणा नं० २. जीवोंकी हानि होतीहै इसलिये ऐसा करना योग्य नहीं परंतु निर्जीव सूखी जगहमें छानेहुए थोडे जलसे या गरम जलसे स्नान करनेका गृहस्थको त्याग नहीं बन सकता।
४०. दूसरी बात यहभीहै कि इन्द्रादि देव भगवान्के शरीरका अग्नि संस्कार खास धर्म बुद्धिसे भगवान्की भक्तिके लिये करते हैं वहां से नंदीश्वरद्वीपमें जाकर वहां के शाश्वत चैत्यों ( सिद्धायतनों ) में शाश्वत जिन प्रतिमाको वंदन-पूजन भक्तिभावसे जिन गुण गाते हुए अट्ठाई महोत्सव करते हैं। यह अधिकार खास ढूंढियोंके छपवाये जंबू. द्वीपपन्नत्तिसूत्र में आदीश्वर भगवानके निर्वाण अधिकार में, जीवाभि गमसूत्र में तथा स्थानांगसूत्रके चौथेठाणेमें नंदीश्वरद्वीपके वर्णन अधि. कार में खुलासा सहित लिखाहै । पाठकगण ढूंढियोंके सूत्र निकालकर यह प्रत्यक्ष प्रमाण देख लें, जब इन्द्रादि देवोंकी तरह गुरुका मुर्दा जलने की बात ढूंढिये मान्य करतेहैं, तब देवोंकी तरह जिनप्रतिमाकी पूजा व अठाई महोत्सव आदि जिनभक्तिके कार्य करनेकाभी ढूंढियोंको मान्य करना चाहिये, जिसपरभी जिनपूजा-भक्तिकी निंदाकरके मनाई करतेहैं, यह प्रत्यक्षही झूठा हठाग्रहहै । देवता जिन प्रतिमाकी पूजा माक्षके लिये करतेहैं, इस विषयकी सब शंकाओंका समाधान सहित आगे लिख नेमें आवेगा।
४१. यदि ढूंढिये श्रावक कहें कि हमलोग यह सब कार्य संसार खाते करतेहैं, परंतु धर्म बुद्धिसे नहीं. यहभी ढूंढियोंका कथन झूठ है, क्योंकि तपस्याके पूरके महोत्सवमें मंडप बनवाना, ध्वजा पताकाएँ लगवानी, साधुका फोटो उतरवाना, मुर्दाका महोत्सव करना, छत्री या निर्वाण मंदिर बनवाने, उसमें लोगोंके दर्शनके लिये साधुके चरण पादुका या फोटो स्थापन करना, तथा साधुके उपदेशसे गरीबोंको अन्न-वस्त्रादि देन!, मीठाई बनवाकर प्रभावना बांटनी, पशु छोडाने, पाठशाला-अनाथालय स्थापन करवाने, शास्त्र छपवाने, स्थानक बनवाने, चौमासामें साधुको वंदना करनेको जाना, दीक्षा महोत्सव करना, साधुको लेनेको व पहुंचानेको जाना इत्यादि यह सब कार्य विवाह शादी ओसर- मोसरकी तरह किसी तरह संसार संबंधी नहींहै किंतु साधुके तपस्याके पूर आदिके नामसे पत्रिका छपवाकर तार देकर आग्रह पूर्वक लोगोंको बुलाकर किये जाते हैं, यह प्रत्यक्ष गुरु भक्ति है । ढूंढिये