________________
४८ . जाहिर उद्घोषणा नं० २. . अपने गुरुकी महीमा बढानेके लिये ऐसे २ हिंसाके कार्य करतेहैं और अनंत उपकारी श्रीतीर्थकर परमात्माकी पूजा भक्तिकी निंदाकरते हुए दर्शन करनेको जानेवालोको मनाई करके अंतराय बांधतेहै, यही प्रत्यक्ष मिथ्यात्वहै । जिसपरभी संसार खाताका नाम लेकर मायाचारीसे १७ वां मायामृषा पापस्थानक का सेवन करते हुए निर्दोष बनना चाहतेहैं सो कभी नहीं होसकते, आत्मार्थी सच्चे जैनीको ऐसे मिथ्यात्वका त्याग करनाही हितकारी है।
४२. यदि ढूंढिये साधु कहें कि तपस्याके पूर का महोत्सव आदि ऐसे हिंसाके कार्य करनेका हम नहीं कहते, यहभी मायाचारी सहित प्रत्यक्ष झूठहै, जिस प्रकार जिनमंदिर जाने वालोंको ढूंढिये साधु मनाई करदेते हैं, सोगन दिलवा देतेहैं, उसी प्रकार यदि तपस्याकापूर-मुर्दा महोत्सव आदि ऐसी हिंसाके कार्य करनेकी ढूंढिये साधु मनाई करदै, सोगन दिलवादें तो कभी न होने पावें, यह प्रत्यक्ष प्रमाणहै कि तपस्याके पूरका दिन अपने भक्तोंको महीना १५ रोज पहिलेसेही बतला दिया जाताहै उसीसेही पत्रिका छपतीहैं, तार छुटतेहैं, मोटर घोडागाडी आदि स्वारीकी दोड धूम मच जातीहै, बहुत लोगोंको आये देखकरें बड़ेखुसहिोतेहैं, आनेवालोंकी व भोजनभक्ति वगैरह सारसंभालकरने वालोंकी 'तुमतो बड़े भक्तहो' इत्यादि प्रसंशा करते हैं इसीसे चौमासा आदिमें ऐसे हिंसाके कार्य होते हैं इसलिये ऐसी हिंसा करवाने वाले मूल कारणभूत खास ढुंढिये व तेरहापंथी साधु ही हैं।
४३. औरभी तीन रोजका दहीमें, बहुत रोजके बाजारके चूर्णमें तथा आटा, मेदा, मसाले, कचीखांड, मेवा, घृत आदि अनेक वस्तुओंमें ऋतुभेदसे कालमान उपर उन्होंमें त्रस जीवोंकी उत्पत्ति होतीहै, ढुंढियों को ऐसी अनेक बातोंका पूरा ज्ञान नहींहै, जिससे ढूंढिये साधु-साध्वी श्रावक श्राविकाएँ ऐसी वस्तु खाकर पापके भागी होतेहैं और ढूंढियोंकी पुस्तकोंमें ऐसी वस्तुओंकी काल मर्यादाका विधानभी नहींहै, इसीसेही हूंढियोंकी अज्ञान दशासे ढुंढियोंके अनेक कतळ प्रत्यक्षही सर्वज्ञ शासन विरुद्ध हैं। जिसपरभी सच्चे जैनी होनेका दावा करतेहैं और अनादि मर्यादा मुजब मोक्ष के हेतु जिन प्रतिमाकी पूजा आदि सच्चे जैनियोंकी बातोंकी निंदा करके लोगोंको बहकातेहैं, यही प्रत्यक्ष मिथ्यात्वका झूठा