Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 39
________________ • जाहिर उदघोषणा न० २. ३७ था इसलिये ठंढा आहार लेनेका सूत्र कारने बतलाया है । ढूंढियों को इस बात का ज्ञान नहींहै इसलिये रात्रि वासी रोटी,बाजरी का रोटला, खीचडी, आदि ठंढा आहार को निर्दोष समझ कर लेतेहैं, यही बड़ी अनसमझ है। कहनका सारांश यही है शीरा रोटी नरमपुडी आदि में जलका अंशज्यादे रहताहै, जिससे चार प्रहर बाद जीवोंकी उत्पत्ति होतीहै उससे ऐसीवस्तु दूसरे रोज लेना योग्य नहींहै और लड्डु आदि मीठाई में पक्की चासनी होने से जलका अंश कम रहताहै जिससे यदि मीठाई न बिगडने पावे तो वर्षा कालमें १५ रोज तक उष्ण कालमें २० रोज तथा शीत कालमें उत्कृष्ट एक महीना तक जीव उत्पन्न नहीं होते, उससे ऐसी वस्तु दूसरेरोज लेनेमें दोष नहींहै, जिस परभी ढूंढिये लोग 'मीठे लडु लेते हो उसीतरह वासीठंडीरोटीक्यों नहीं लेते' ऐसी कुयुक्ति लगाकर लड़की तरह वासीरोटी लेनेका ठहरानेवाले अपनी बडी अज्ञानता प्रकट करतेहैं। १९. मक्खण (लोणी) छाछमेंसे बाहिर निकालनेपर तत्काल अंतर मुहूर्तमेही उसी वर्णकी फुलण आदि अनेक जीवोंकी उत्पत्ति होतीहै, और अन्यभी उन्माद, प्रमाद वगैरह दोषोंको बढाने वालाहै इसलिये धर्मी श्रावक और साधुको मक्खण खाने योग्य नहींहै, ढूंढियोंको इस बातकाभी ज्ञान नहींहै, इसलिये ढूंढिये साधु मक्खण लाकर खातेहैं, यह भी अनंतकायकी विराधना का हेतु होनेसे त्याग करना योग्यहै । ____ २०. मधु (सहत ) में मक्खियोंका व मक्खियोंके इंडोंका रस मिला हुआ रहताहै तथा उसमें अनंतकायकी व उसीवर्णके त्रस जीवों की भी उत्पत्ति होती है, जिससे धर्मीश्रावकभी सहतको अभक्ष समझ कर दवाईमेंभी खाने का पाप समझते हुए नहीं खाते, जिसपरभी ढूंढियों को इस दोष का ज्ञान नहींहै, इसलिये ढूंढियें साधु सहत खातेहैं, यहभी अभक्ष होनेसे त्याग करना योग्यहै। . ___ २१. दूधमें गुड मिलानेसे उसमें तत्काल सुक्ष्म असंख्य जीवों की उत्पत्ति होतीहै और दारु (सराब) समान दोष होताहै, जिससे कोई । २ ब्राह्मण वगैरह उत्तम हिंदु कभी देवी देवताओं को दारु चढानेकी जगह दुध-गुड मिलाकर चढातेहैं यह प्रत्यक्ष प्रमाणहै, इसलिये अभक्ष होनेसे जैनियों को खाने-पीने योग्य नहींहै। ढूंढियाँको इस बातकाभी ज्ञान नहीं, ढूंढियेसाधु दूधर्म गुड मिलाकर खाते-पीतेहैं यहभी त्यागकरने योग्यहै ।

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