Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 45
________________ जाहिर उद्घोषणा नं० २. ४३ वस्तुभी साधुको सर्वथा लेना योग्य नहींहै, जिसपर भी जो ढूंढिये साधु लेतेहैं वो लोग अनंत जीवोंकी हिंसाका दोषके भागी आप होतेहैं और दूसरोंकोभी बनातेहैं, यह बात हमने दक्षिण व खानदेशमें धूलिया वगैरह बहुत गांवोंमें ढूंढियोंके श्रावकोंके घर में प्रत्यक्ष देखीहै. वे लोग हमको आलु- कांदे का शाक देनेलगे, हमने कहा तुमलोग दया पालने वाले कहलाकर कंदमूलके अनंत जीवों को खातेहो, तब वे लोग बोले हमारे साधुभी खातेहैं, जब हमने समझाकर उपदेश दिया, तब समझ गये. इसलिये ऐसी वस्तु साधुको नहीं लेना चाहिये, जिससे गृहस्थ लोगभी त्यागकरें । पहिलेके साधु शहर बाहर रहतेथे, अकस्मात गांव में आकर निर्दोषमिला सो लेकर चलेजाते थे परंतु अब अपनेलोग गांव में व भक्तोंके पासमें रहते हैं इसलिये द्रव्य-क्षेत्र-काले भाव देखकर बहुत वस्तुओंका बचाव करना उचितहै किंतु सूत्रकी बातें आगे लाकर पेट भराईको पुष्ट करना उचित नहींहै। ३४. ढूंढिये साधु-साध्वी अपनी पूजा मानताके लिये अपने भकोंको अपने दर्शन करानेके लिये खास युक्ति पूर्वक बैठकर अपना फोटो उतरवातेहैं, अपने भक्तोंको दर्शनके लिये देतेहैं, उस फोटोको धोकर साफ करनेमें बहुत जल दुलताहै, जिससे अप काय आदि छ कायके असंख्य व अनंत जीवोंकी हिंसा होतीहै (जिनराजकी मूर्तिकी, फोटोकी निंदाकरतेहैं और अपनीफोटोदर्शनकेलिय देतेहैं यही बडा अधर्महै ) इस लिये यहभी हिंसाकाकार्य त्याग करनेयोग्यहै । अनुमान २०-२५ हूंढिये साधु-साध्वियोंके फोटो हमारेपास मौजूदहैं किसीको देखनेकी इच्छाहोतो हमारे पास आकर देख सकतेहैं । ___३५. ढूंढिये व तेरहापंथी साधु अपने २ भक्तोंकी चौमासेकी वि. नंती फागण चैत्र वैशाखमें पहिलेसेही मानलेतेहैं, जिससे वे लोग साधुके ठहरनेके और साधुको वंदना करनेको आने वालोंको ठहरनेके लिये मकानोंको लीपना, झाडना, पोताई करवाना वगैरहसे सफाई करवानेमें त्रस-स्थावर अनंत जीवोंकी हिंसा करतेहैं और साधुको वंदनाके लिये आनेवाले प्राहुणोंकी भोजन भक्तिकीसामग्रीक लिये आटा, शकर, लकडी आदि खरीदकर इकट्ठे करलेतेह, उनमें वर्षाके दिनोंमें असंख्य जीवोंकी उत्पत्ति व हानि होतीहै. यह अंध श्रद्धाकी गुरुभक्तिका रिवाज सर्वथा जिनाज्ञा विरुद्ध और प्रत्यक्ष छ कायके जीवोंकी हिंसा कराने वाला

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