________________
३०
जाहिर उद्घोषणा नं० २.---. विरुद्ध होकर मुंहपति बांध कर बोलने वाले की भाषा को निर्दोष कहते है, इसलिये जिन आज्ञा के उत्थापन करने वाले बनते हैं। एक जिनराज की आज्ञा उत्थापन करने वालों को अतित, अनागत और वर्तमान काल के अनंत तीर्थकर महाराजों की आज्ञा उत्थापन करने का दोष आता है, उससे अनंत संसार बढता है।
३६. ऊपर मुजब जिनामा विरुद्ध होकर हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखकर फिरनेसे जैनलिंग बदल जाता है, जैनलिंग बदल जानेसे, द्रव्य मुनिधर्म चला जाता है, द्रव्य मुनिधर्म जानेसे, अन्यलिंग हुआ, अन्य लिंगको जैनलिंग कहनेसे, श्रद्धारखनेसे और गुरु माननेसे, सम्यम् दर्शन जाताहै, सम्यग् दर्शन जानेसे सम्यग् ज्ञान जाता है, सल्यग् ज्ञान जानसे सम्यग् चारित्र जाता है, इस तरहसे खास मोक्षके हेतु सम्यम् दर्शन, ज्ञान, चारित्रके जानेसे मिथ्यात्व आताहै, मिथ्यात्व आनेसे द्रव्य
और भाव दोनों प्रकारका साधुका धर्म चला गया, द्रव्य-भावसे साधुका धर्म जानेपरभी शुद्ध साधु कहलानेसे झूठा ढोंगहुआ, झूठे ढोंग में जैन शासनके नामसे भोलेलोगोंको फँसानेसे सञ्चेमोक्ष मार्ग का उत्थापन हुआ, सच्चे मोक्षमार्गका उत्थापन होनेसे संसार भ्रमणका फल हुआ, संसार भ्रमण करनेसे ८४ लक्ष जीवायोनिकी घात हानेका दोष आया, इस प्रकार हमेशा मुंहपत्ति बांधनेका ठहराने में जिनाज्ञाकी उत्थापना, मिथ्यात्वकी प्राप्ति और संसार भ्रमणादि अनेक दोषों का सेवन करना पडता है परंतु तत्त्व द्रष्टिसे कुछभी लाभनहीं है, जिसपरभी वढिये लोग 'जिनवर फुरमाया, मुंहपत्ति बांधो मुख उपरे' ऐसी२ जिनराजके नामसे रागबनाकर हजारों पुस्तकें छपवाकर बडे २ शास्त्रोंके नामसे झूठी धोखा बाजी करके हमेशा मुंहपत्ति बांधनेका ठहराकर आप डूबतेहैं और अपने भक्तोंकोभी डूबाते हैं ( इसका पूरा २ विशेष निर्णय मूल ग्रंथमें देखो) इस प्रकार हमेशा मुंहपात्त बांधना अनर्थका मूल होनेसे इस ग्रंथको पढे बाद हूंढियेव तेरहापंथी साधु-साध्वी-श्रावक और श्राविका अबतो कोई भी सम्क्त्वा इसबातका आग्रह कभी न करेंगे, इतनेरोज अंधरूढिसे बांधी या बांधनकी पुष्टिकी उसका प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध होकर बांधने का त्याग करके सत्य बात अवश्य ग्रहण करेंगे, यही परम हितकारी है।