Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 30
________________ जाहिर उद्घोषणा नं० २. अंतसमयतक मुंहपत्ति बांधी हुई रखवाते हैं यहभी हठाग्रह की बडी भूल है । २४. कई २ ढूंढिये श्रावक कभी मस्तकपर पगडी तथा अंगपर अंगरखी और पायजामा पहने हुएभी अपने मुंहपर मुंहपत्ति बांधकर आनुपूर्वी या नवकरवाली ( माला ) फैरने बैठ जाते हैं, यहभी सर्वज्ञ शासन में नाटक जैसा सांगहै । २८ २५. पढे लिखे समझदार नवयुवकोंकी व प्रतिष्ठितलोगोंकी मुंहपत्ति बांधनेकी श्रद्धा नहीं है और बांधने में भी वे शर्मी समझते हैं, इसलिये सामायिक आदि करते समय केवल मतपक्षकी शर्मसे हाथमें मुंहपत्ति रखकर मुंडकी यत्ना नहीं करते और धोती दुपट्टेको अपने मुंहपर लपेट लेते हैं यहभी ढोंगहै । २६. जैन शासनमें आनंद- कामदेवादि अनेक श्रावक होगये हैं, परंतु ढूंढियोंकी तरह किसी भी श्रावकने अपने मुंहपर मुंहपत्ति कभी नहीं बांधी, तिसपर भी इन लोगोंने बिचारे भोले लोगोको मुंहपत्ति बंधवाकर जिनेश्वर भगवान्की आज्ञा उत्थापन करनेवाले बनायें हैं । २७. मारवाड आदि देशों में ढूंढक, तेरहापंथी श्राविकाओंकी मुँहपत्ति उपर गोटा या मोती वगैरह जौहरात लगा हुआ रहताहै, यह भी बडी भूल है । २८. बाईस टोलेवाले सब ढूंढियोंकी और तेरहपंथियोंकी मुंहपत्ति में लंबाई चौडाई छोटी मोटी वगैरह तरह २ की विचित्र प्रकारकी भिन्नता है, परंतु एक प्रमाण नहींहै, यहभी प्रत्यक्ष शास्त्र विरुद्ध है । २९. सूत्रों में शुद्ध ज्ञान क्रिया से मुक्तिहोना बतलाया है परंतु वेष लेने मात्र से मुक्तिहोना नहीं बतलाया तोभी ढूंढिये भोले जीवोंको बहकाने के लिये मुंहपत्ति बांधने से तीसरे भवमें मुक्तिहोनेका बतलाते हैं यहभी उत्सूत्र प्ररूपणाद्दै । ३०. जगतमें यह बात प्रसिद्ध है कि चौर डाकू निंदक वगैरह अपने मुंह छुपाते हुए फिरते हैं । इसी तरह ढूंढिये भी जिनप्रतिमाकी तथा पूवायकी मूंठी २ निंदा करने वाले और सूत्रोंके पाठोंको व अथको चौरने वाले हैं ( इस बातका प्रत्यक्ष प्रमाण चैत्य - जिनप्रतिमा संबंधी आगे के लेखमें बतलानेमें आवेगा ) इसलिये इनकी मुंह बांधकर मुंह छुपाने की दुर बुद्धि हुई है । ३१. निशीथसूत्र में साधुको अपने मुखकी शोभाकेलिये दांतोंको

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