Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 27
________________ ॥ॐ श्री जिनाय नमः ॥ जाहिर उद्घोषणा. नम्बर २.. (झूठको छोडो और सत्यको ग्रहण करो) .. ॥ इसको भी पूरा २ अवश्य ही पढिये ॥ ( हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखने में ३६ दोषोंकी प्राप्ति) . ३३. देखिये अपनेसे किसी कार्यमें पूरा २ उपयोग न रहे कुछ भूल होजावे, दोषलगे तो पश्चाताप करके प्रायश्चित्त लेनेसे शुद्धहोतेहैं इसीलिये प्रतिक्रमणादि क्रियाएँ शास्त्रों में बतलायीहैं । परंतु अपनी प्रमाद दशाकी थोडीसी भूलको आगे करके अनादि सच्ची मर्यादाका उत्थापन करनेसे बडा अनर्थ होताहै। इसी तरहसे ढूंढियोंने उपयोग न रहनेसे मुंहपत्ति बांधी रखनेका नया रिवाज चलाया किंतु अब इस 'बातमें अनेक दोषोंका सेवन करना पड़ताहै, सो नीचे बतलातेहैं: १. अनादि कालके सर्व साधुओंको हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखने का झूठा दोष लगाते हैं। २. आगमादि शास्त्रोंके नामसे प्रत्यक्ष झूठ बोलकर हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेका ठहरातेहैं। । ३. भगवती सूत्रमें तथा शाताजी सूत्रमें हजामत करनेवाले गृहस्थ नाइयोंने राजकुमारोंके केश काटनेके लिये थोड़ी देर नाक मुंह बांधेथे ऐसा अधिकार है, उस बातको आगे करके ढूंढिये साधुपने में हमेशा मुंह बांधनेका ठहराने वाले अपनी हंसी करवातेहैं। ४. निरयावली सूत्रमें अन्यलिंगी सोमिल तापसने मिथ्यात्व दशा में अपने मुंहपर काष्टमुद्रा बांधीथी, उसी प्रमाणको आगेकरके ढूंढिये भी अपना मुंह हमेशा बांधा रखकर प्रकटपने अन्यलिंगी मिथ्यात्वी बनते हैं। ५. थूककी गीली मुंहपत्ति चौमासेमें सुखाने परभी १-२ रोज तक नहीं सूखती, उसमें समय २ असंख्य संमुछिम पंचेंद्रीय मनुष्यों की उत्पत्ति और हानि होनेका पाप बांधतेहैं।

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