________________
• जाहिर उद्घोषणा. . (ढूंढिये अपनी थोडी सी अकल खर्च करें) २७. देखो ढूंढिये लोग संवेगी साधुओंको दंडी २ कहा करते हैं परन्तु संवेगी साधु हमेशा हर समय हाथमें दंडा नहीं रखते किन्तु आहार वगैरह के लिये बाहिर जाना पडे तब हाथमें धारण करतेहैं नहींतो उपाश्रयमें पडारहताहै। इसी तरहसे ढूंढियोंको अपने कथन मूजिव थोडीसी अकल खर्च करके विवेक बुद्धिसे विचार करना चाहिये कि , बोलनेके समय मुंहआगे मुंहपत्ति रखने वालोको मुखपर वस्त्र धारण करने वाले कहेजाते हैं उससे ढूंढियोंके ही दंडी२ कहनेके न्यायकी तरह हमेशा मुंहपर वस्त्र बांधा रखना नहीं ठहर सकता इसलिये हमेशा बांधने का हठकरने वालों की अनसमझहै। और श्रीमालपुराणमें भी जैनसाधुको हाथमे दंडा, मुखपर वस्त्र, बगलमें रजोहरण धारण करनेवाले लिखे हैं. सो यह तीनों वस्तु जब काम पडे तब उस २ कार्य के उपयोगमे ली जातीहैं नहीं तो पास में पड़ी रहती हैं, इस बातसे भी यह तीनों वस्तु हमेशा बांधी रखनेका नहीं ठहर सकता। इसी तरह से 'अवतारचरित्र' में भी मुंहपत्ति शद्बका पर्याय मुखपट्टी नामामात्र लिखाहै उसको देखकर हमेशा बांधने का ठहराना बड़ी भूलहै।
(नाक और मुंह दोनों से जीव मरते हैं) २८. ढूंढिये कहते हैं नाककी श्वास ( हवा ) से जीव नहीं मरते इस लिये हम नाक खुला रखते हैं, यहभी झूठ है क्योंकि नाकके श्वासोश्वासके झपाटे से छोटे २ जीवों की हिंसाका कहनाही क्या परन्तु डांसमच्छर-मक्खी आदि भी नाकमें घुस जाते हैं और मरभी जाते है यह प्रत्यक्ष प्रमाणहै इसलिये नाककी गरम श्वाससे त्रस-स्थावर दोनों प्रकारके जीवोंकी अवश्य हानि होतीहै तथा बोलते समय मुंहकी श्वास बाहर निकलते ही फैलकर जल्दी ठंडी होजातीहै और नाककी श्वासतो १०१५ अंगुल तक जोर से धमणी की तरह गरम २ चली जातीहै इसलिये मुंहकी श्वाससे भी नाककी श्वाससे जीवों को पीडा विशेष ज्यादे होती है और दिनभरके २४ घंटों में १-२ घंटे बोले तब मुंहसे जीवोंको पीडा होगी परन्तु नाकसे तो २४ घंटे हमेशा जीवों को पीडा होतीहै इसलिये ढूंढियोंकी सच्ची जीवदया तबही समझी जावे जब कि मुंहकी तरह नाक भी हमेशा बांधा रक्खें, नहीं तो दयाके नामसे भोले लोगोंको भ्रममें डालने का ढोंगही समझना चाहिये।