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जाहिर उद्घोषणा.
जोतर गले निवारी ॥ १ ॥ एककाने धज सम कही" इत्यादि उपहासके वाक्य लिखे हैं उसका आशय समझे बिना ऐसे २ प्रमाण आगे करके ढूंढिये लोग हमेशा मुंहपत्ति बांधना ठहराते हैं पुष्ट करते हैं और बडी खुशी मनाते हैं यही बडी अनसमझ की बात है ।
( शिवपुराणादिमें भी हमेशा मुंहपत्ति बांधना नहीं लिखा)
२५. ढूंढिये कहते हैं कि शिवपुराण' में "हस्ते पात्र दुधानश्च तुंडे वस्त्रस्य धारकाः” इस वाक्यमें हमेशा मुंहपत्ति बांधना लिखा है ऐसा कहते हैं सोभी झूठ है क्योंकि इस वाक्यमें हाथमें पात्र रखनेवाले और मुंहपर वस्त्र रखने वाले लिखेहैं । इसका भावार्थ ढूंढियोंकी समझमें नहीं आया इसलिये हमेशा मुंह बांधनेका ले बैठे हैं देखो - हाथमें पात्र कहने से आठोही प्रहर रात्रिदिन हमेशा हाथ में पात्र नहीं लियाजाता किंतु जब आहार आदि कार्य होवें तब उस प्रयोजन के लिये लियाजाता है. वैसे ही मुंहपर मुंहपत्ति कहने से जब बोलनेका कार्य होवे तब मुंहपर मुंहपत्ति रखनेमें आती है परन्तु हमेशा बांधनेका नहीं ठहर सकता. जिसपर भी हमेशा बांधने का हठ करने वाले ढूंढियोंको मुंहपत्तिकी तरह सोते, बैठते, सूत्रपढते, व्याख्या वांचते वगैरह सर्व कार्योंमें हमेशा हाथमें पात्र भी रखना चाहिये और हमेशा हाथमें पात्र रखना मंजूर न करें तो हमेशा मुंहपत्ति बांधनेकी अज्ञानता का हठाग्रहको छोडदेना योग्य है ।
( नाभा में भी ढूंढिये हारगये थे )
२६. पंजाब देशमें 'नाभा' में मुंहपत्तिकी चर्चा में ढूंढियोंने हमेशा मुंहपत्ति बांधने बाबत 'शिवपुराण' का वाक्य आगे कियाथा उसपर वहांके मध्यस्थ विद्वानों ने अपने फैसलेमें ऐसे लिखा है कि “आपके प्रतिवादीके हठके कारण और उनके कथनानुसार हमें शिवपुराणके अवलोकनकी इच्छा हुई. बस इस विषयमें उसके देखने की कोई आवश्यकता नहीं थी. ईश्वरेच्छासे उसके लेखसे भी यही बात प्रकट हुई कि वस्त्रवाले हाथको सदा मुखपर फैंकता है इससे भी प्रतीत होता है कि सर्व काल मुखवस्त्र मुखपर बांधे रहने की आवश्यकता नहीं है किंतु वार्तालापके समय पर वस्त्रका मुखपर होना जरूरी है" इस लेखमें हाथमें मुंहपत्ति रखना ठहराया है इस लिये 'नाभा' की चर्चा के नामसे हमेशा मुंहपत्ति बांधने का ठहराने वाले मायाचारी सहित प्रत्यक्ष मिथ्यावादी हैं ।
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