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• जाहिर उद्घोषणा. नाक मुंह दोनोंकी यना हो सकती है और मुंह परसे सचित्त रज वगैरह की प्रमार्जनाभी हो सकतीहै अगर बांधी हुई होवे तो यह सब कार्य नहीं बन सकते इसलिये मुंहपत्ति हमेशा बांधी रखनसे मुंहपत्तिसे करने योग्य सर्व कार्य अधूरे रहतेहैं, उस से मुंहपत्ति रखनेका पूराफल नहीं होसकता इसलिये सूत्र विरुद्ध होकर अधूरी क्रिया करने रूप हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखना योग्य नहीं है।
(देखो हलाहल झूठ का नमूना) १६. प्रवचनसारोद्धार (प्रकरण रत्नाकर भाग तीसरा), आचार दिनकर, ओघनियुक्ति, आवश्यक बृहद्वृत्ति, यतिदिनचर्या, योग शास्त्र वृत्ति, आदि सर्व प्राचीनशास्त्रोंमें तथा साधुविधि प्रकाश आदि सर्व आधुनिक शास्त्रोंमें “सम्पातिमा जीवा मक्षिका मशकादयस्तेषां रक्षणार्थ भाषमाणे मुखे मुखवस्त्रिका दीयते" तथा "मुखवस्त्रिका कराभ्यां मुखाग्रे धृत्वा” इत्यादि, इस प्रकार मुंहपत्ति हाथमें रखना तथा बोलते समय मुंहआगे रखकर बोलना और प्रतिक्रमणादिधर्मक्रिया करनी ऐसा खुलासा पूर्वक स्पष्ट लिखाहै तो भी ढूंढिये इन सर्वशास्त्रोंके नामसे हमेशा मुंहपर मुंहपत्ति बांधनेका ठहरातेहैं सो प्रत्यक्ष हलाहल झूठ बोल कर उत्सूत्र प्ररुपणा से उन्मार्ग बढाते हैं । बडे २ प्राचीन शास्त्रोंके नामसे भोले लोगों को भ्रममें डालनेमें ही ढूंढियोंने अपनी बहादुरी समझ रक्खी है, परन्तु ऐसी झूठीप्रपंच बाजी करनेसे कर्म बंधन होनेका भय होता तो ऐसा अनर्थ कभी न करते आत्मार्थी भव्यजीवों को ऐसे झूठे प्रपंच को त्याग करना ही हितकारी है।
(थूक में असंख्य जीवों की उत्पत्ति) १७. हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखने से बोलते समय मुंहपत्तिके थूक लगताहै मुंहपत्ति गीली होती है, उसमें समय २ असंख्य पंचेंद्रीय संमूर्च्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं और मरते हैं, यह पंचेंद्रीय जीवोंकी हिंसा का दोष हमेशा मुंहपत्ति बांधने वाले ढूंढियों को लगताहै जिस पर भी उस का झूठा बचाव करने के लिये ढूंढिये कहते हैं कि संमूछिम जीवों की उत्पत्ति के १४ स्थान बतलाये हैं उस में थूक का १५ वां स्थान : नहीं बतलाया इसलिये थूकमें जीवोंकी उत्पत्ति नहीं होती यह भी ढूंढियों का कहना सर्वथा सूत्र विरुद्ध है क्योंकि देखो १४ स्थानों में मुख के मैलो तथा सर्व अशुचि पदार्थोंमें जीवोंकी उत्पत्ति होना बतलायाहै