________________ प्रकीर्णकों में ही समाहित किया जाता था / इससे सुत्ताइं ग्रन्थ में जो अन्य प्रकीर्णक सङ्कलित हैं, जैन आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का क्या स्थान वे हैं - है, यह सिद्ध हो जाता है / प्राचीन दृष्टि से तो १-कुसलानुबंधि अज्झयण-चउसरणपइण्णयं अङ्ग आगमों के अतिरिक्त सम्पूर्ण जैन अवरणामयं सिरिवीरभद्दायरियविरइयं च, आगमिक साहित्य प्रकीर्णक वर्ग के अन्तर्गत २-आउरपच्चक्खाणं, ३-आउरपच्चआता है / क्खाणपइण्णय-सिरि वीर भद्दाचरियविर इयं, __ वर्तमान में मुनि पुण्यविजयजी ने ४-वीरभद्राचार्य विरचित आराहणापडाया, पइण्णयसुत्ताई (दो खण्ड) नामक ग्रन्थ के प्रथम ५-आराहणासार अवरणामा पज्जंताराहणा, भाग में (जैन आगम सम्बन्धित संक्षिप्त वक्तव्य, ६-आराहणापणगं, ७-सिरिअभयदेव-सूरिपणीयं पृ० 18 में) 22 प्रकीर्णकों का उल्लेख किया है। आराहणापयरणं, ८-जिणसेहरसावयं . पई चूँकि प्रकीर्णकों की कोई निश्चित नामावली नहीं सुलससावयकाराविया आराहणा, ९-नन्दनमुनि है और यह कई प्रकार से गिने जाते हैं, निम्न- आराधितआराधना, १०-आराहणाकुलयं, लिखित 22 प्रकीर्णकों का सभी प्रकारों में से संग्रह ११-मिच्छादुक्कडकुलयं, १२-आलोचणाकुलयं, किया गया है / ये हैं - १-चउसरण, १३-अप्पविसोहिकुलयं / / २-आउरपच्चक्खान, ३-भत्त-परिण्णा, उपरोक्त “जैन आगम सम्बन्धित संक्षिप्त ४-संथारय, ५-तंदुलवेयालिय, ६-चन्दावेज्झय, वक्तव्य" में उल्लिखित 22 प्रकीर्णकों में चार ऐसे ७-देविंदस्तव, ८-गणि-विज्जा, प्रकीर्णक हैं जो पइण्णयसुत्ताई में सङ्कलित नहीं ९-महापच्चक्खान, १०-वीरथुई, हैं - ये हैं अजीवकल्प, अङ्गविज्जा, सिद्धपाहुड ११-इसिभासियाई, १२-अजीवकल्प, एवं जीवविभक्ति / इस प्रकार पइण्णयसुत्ताई में १३-गच्छाचार, १४-मरणसमाहि, कुल 32. प्रकीर्णक हो जाते हैं / अब ये चार १५-तित्थोगाली, १६-आराहणापडाया, प्रकीर्णक क्यों नहीं सङ्कलित लिये गये हैं इसका १७-दीवसागरपण्णत्ति, १८-जोइसकरण्डय, उल्लेख प्राप्त नहीं होता, जब कि ये सब उपलब्ध १९-अंगविज्जा, २०-सिद्धपाहुड, २१-सारावली हैं / ऐसा लगता है कि ये चारों अलग से प्रकाशित और २२-जीवविभत्ति / होने और कुछ बड़े होने के कारण यहाँ सङ्कलित परन्तु पइण्णयसुताइं (दोनों भाग) में सम्पादक नहीं किये गये / इसे भी मानें तो वर्तमान में मुनि पुण्यविजय जी ने कुल 32 प्रकीर्णकों को उपलब्ध 36 प्रकीर्णक हैं / दूसरी और 'प्रकीर्णक सङ्कलित किया है / इनमें से कुछ समान नाम साहित्य : मनन और मीमांसा' नामक ग्रन्थ में एक वाले हैं पर इनके लेखक और काल भिन्न हैं / लेख (प्रकीर्णकों की पाण्डुलिपियाँ और प्रकाशित उपरोक्त बाइस प्रकीर्णकों के अलावा पइण्णय- संस्करण, लेखक जौहरीमल पारख) में दी गयी 6. प्रकीर्णक साहित्यः मनन और मीमांसा पृ० 2 32 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन