________________ प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन डॉ. अतुलकुमार प्रसाद सिंह आगम-साहित्य मुख्यतः दो भागों में विभक्त हैं / आवश्यक व्यतिरिक्त ग्रन्थों को कालिक और है / अङ्गबाह्य आगम और अङ्गप्रविष्ट उत्कालिक दो भाग में विभक्त किया गया है / आगम / अङ्गप्रविष्ट आगम वह है जिसका वर्तमान में कुल 46 आगम (दृष्टिवाद को उपदेश तीर्थङ्करों ने स्वयं दिया और गणधरों ने छोड़कर 45) श्वेताम्बर मूर्तिपूजक-सम्प्रदाय में जिसे सूत्ररूप में संगृहीत किया / ऐसे 12 अङ्ग मान्य हैं / इनमें प्रकीर्णकों को श्वेताम्बर-सम्प्रदाय आगम हैं / ये हैं - आचाराग, सूत्रकृताङ्ग, के तेरापंथ एवं स्थानकवासी स्वीकार नहीं करते स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, हैं / इस प्रकार विशाल प्रकीर्णक साहित्य ज्ञाताधर्मकथा, उपाशकदशा, अन्तकृद्दशा, साम्प्रदायिक दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है / अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र परम्परागत मान्यतानुसार जिस तीर्थंकर के और दृष्टिवाद / इसमे दिगम्बर मान्यतानुसार संघ में जितने श्रमण होते हैं उनमें से प्रत्येक के दृष्टिवाद के कुछ भाग (कसायपाहुडसुत्त और द्वारा एक-एक प्रकीर्णक की रचना का उल्लेख है, षट्खण्डागम) को छोड़कर सभी आगम लुप्त माने इसी कारण समवायाङ्गसूत्र में ऋषभदेव के गये हैं तो श्वेताम्बर मान्यतानुसार बारहवें आगम चौरासी हजार शिष्यों के उतने ही प्रकीर्णकों का दृष्टिवाद का विलोप हो चुका है / 'अङ्गबाह्य उल्लेख हैं / इसी प्रकार महावीर के तीर्थ में चौदह आगम वे हैं जो सीधे तीर्थकरों की वाणी नहीं है हजार श्रमणों द्वारा इतने ही प्रकीर्णक रचने की अपितु जिनमें तीर्थड्करों के विचारों की व्याख्या मान्यता है / अन्य आचार्यों द्वारा की गयी है / इसमें 12 __ प्रकीर्णक 'प्र' उपसर्गपूर्वक 'कृ' धातु से 'क्त' उपाङ्ग, 6 छेदसूत्र, 4 मूलसूत्र, 10 प्रकीर्णक एवं प्रत्यय सहित निष्पन्न 'प्रकीर्ण' शब्द से 'कन्' 2 चूलिका-सूत्र माने जाते हैं / नन्दीसूत्र में इन प्रत्यय होने पर बना है / इसका शाब्दिक अर्थ है अङ्गबाह्य आगमों को प्रथमतः दो भागों में रखा - नानासंग्रह, फुटकर वस्तुओं का संग्रह और गया हैं- आवश्यक एवं आवश्यक व्यतिरिक्त / विविध वस्तुओं का अध्याय, पर जैन-साहित्य में आवश्यक के अन्तर्गत सामायिक आदि छः ग्रन्थ 'प्रकीर्णक' एक विशेष प्रकार का पारिभाषिक 1. जैसे अंग आगम व पूर्वो की रचना तीर्थंकरों से अर्थ (त्रिपदी) जान कर गणधर करते हैं, वैसे अंगबाह्य आगम व प्रकीर्णक आदि श्रुत की रचना भी तीर्थंकरों से अनंतर, परंपर उपदेश प्राप्त कर गणधर, प्रत्येक बुद्ध, स्थविर, पूर्वधरादि आचार्य आदि मुनिवर करते हैं / यथा-आवश्यक सूत्र आदि - संपादक / 1. समवायाङ्ग, सम्पादक-मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर 1982 ईस्वी, समवाय 84 / 2. समावायाङ्ग, सम्पादक-मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर-१९८२ ईस्वी, समवाय-१४ 30 प्रकीर्णक साहित्य: एक अवलोकन