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निष्पन्न और नित्य सांसारिक जीवन की अनुभूति में से लिया गया है । सव ही उपमायें एवं उदाहरण वास्तविक हैं, जो लोकभाषा एवं 'जनानुभव में से अनायास ही आये हैं । उस युग के मुनिजनों के विचार और चर्चा सम्बद्ध प्रचलित कविता-प्रवाह में से लेकर, यहाँ कुछ व्यवस्थित रूप में संकलित कर प्रस्तुत किये गये हैं, ऐसा प्रतीत होता है।
डा. कमलचन्द सोगानी जी ने आचारांग-चयनिका की तरह इस दशवकालिक सूत्र-सरोवर में से भी उत्तमोत्तम पुडरीक चुन कर एक प्रकार से सारग्राही और सुरभियुक्त पद्यकुसुमावलि सानुवाद प्रस्तुत की है। अनुवाद केवल शब्दशः न होते हुए पद्यों के अन्तरंग को प्रकट करने वाला है और इस हेतु उन्होंने बहुत परिश्रम भी किया है । चयनकार डा. सोगानी, प्राकृत भारती अकादमी के सचिव श्री देवेन्द्रराजजी मेहता एवं अकादमी के ही निदेशक महो. पंडित विनयसागर जी इस सार्थक प्रकाशन के यशःभागी हैं।
मधुसूदन ढांकी
दणकालिक ]
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