Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[(न) + (अभिकखे)] न (अ)=नहीं अभिकने (अभिकख) व 3/1 सक इड्ढि (इड्ढि) 2/1 च (अ)=तथा सक्कारण. (सक्कारण) मूल शब्द 2/1 पूयणं (पूयण) 2/1 च (अ) --एवं चए (च) व 3/1 सक ठियप्पा (ठियप्प) 1/1 वि अणिहे (अरिणह) 1/1 वि जे (ज) 1/1 सवि स (त) 1/1 सवि भिक्खू (भिवबु) 1/1
* 'गति' प्रर्य की क्रिया के योग में द्वितीया विभक्ति होती हैं।
• किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा गन्द काम में लाया जा सकता हैं। 91. न (अ)=नहीं परं (पर) 2/1 वि वएन्जासि (वन) विधि 2/1
सक अयं (इम) 1/1 सवि कुसीले (कुसील) 1/1 वि जेणऽन्नो [(जेण) + (अन्नो)] जेण (अ)=जिससे अन्नो (अन्न) 1/1 वि कुप्पेज्ज (कुप्प) विधि 3/1 अक तं (त) 2/1 सवि वएज्जा (वन) विधि 2/1 सक नाणिय (जाण) मंक पत्तेय* (अ)=अलग-अलग पुण्ण-पावं [(पुण्ण)-(पाव) 2/1] अत्ताणं (अत्ताण) 2/1 समुक्कसे (समुक्कस) व 3/1 सक जे (ज) 1/1 सवि स (त) 111 सवि भिक्खू (भिक्खु) 1/1
* यहां अनुस्वार का लोप हुआ हैं । (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-29) । 92. न (अ) नहीं नाइमत्त [(जाइ)-(मत्त) 1/1 वि] य (अ)=
और रूवमत्ते [(रूव)-(मत्त) 1/1 वि] लाभमत्ते [(लाभ)(मत्त) 1/1 वि] सुएण* (सुअ) 3/1 मते (मत्त) 1/l वि मयारिण (मय) 2/2 सव्वाणि (सव्व) 2/2 वि विवज्जइत्ता (विवज्ज) संकृ धम्मज्झारणरए [(धम्मज्माण)-(रअ) 1/1 वि] य (अ) तथा जे (ज) 1/1 सवि स (स) 1/1 सवि भिक्खू (भिक्खु) 1/1
* 'कारण' व्यक्त करने के लिए तृतीया या पंचमी का प्रयोग होता है । 93. तं (त) 2/1 सवि देहवासं [(देह)-(वास) 2/1] असुई (असुइ)
2/1 वि असासयं (असासय) 2/1 वि सया (अ)=सदा चए (चन)
व 3/1 सक निच्चहियट्टियप्पा [(निच्च) वि-(हिय)-(ट्ठियप्प) 1/1 74 ]
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