Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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वि] [छवित्त (छिंद) मंकू जाईमरणस्स [ ( जाई ) * - ( मरग) 6 / 17. बंघणं (तंत्ररण) 2/1 उवेइ ( उवे ) व 3 / 1 सक भिक्खु ( भिक्खु ) मूल शब्द 1 / 1 अपुणागमं ( पुगागम) 2 / 1 गई ( गइ ) 2 / 1
* जाइ→ जाई, समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर हृस्व के स्थान पर दोघं और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व हो जाया करते हैं । (हेम प्राकृत व्याकरण 1-4) I
कर्ताकारक के स्थान में मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा मकता है । (पिल: प्राकृत भाषाों का व्याकरण, पृष्ठ 518 ) ।
94. जया ( अ ) = जब य ( अ ) = सर्वथा चपई * ( चय) व 3 / 1 सक धम्मं (धम्म) 2 / 1 अरज्जो ( राज्ज) 1 / 1 वि भोगकारणा [ ( भोग) - ( काररण) 5 / 1] से (त) 1 / 1 सवि तत्थ (त) 7/1 स मुच्छिए (मुच्छित्र) 1 / 1 वि बाले ( बाल ) विप्राय (प्राय) 2 / 1 नावबुज्झई [ (न) + (अवबुज्झई ) ] (अवबुज्झ ) व 3 / 1 सक
1 / 1
न
•
( अ ) = नहीं अवबुज्झई •
* पूरी या प्राधी गाथा के अन्त में आने वाली 'इ' का त्रियापदों में बहुधा 'ई' हो जाता है । (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138 ) ।
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया हैं ।
95. इहेव धम्मो [ ( इह ) + (एव) + (अधम्मो )] इह ( अ ) = इस लोक में एव ( अ ) = भी अधम्मो ( अधम्म ) 1 / 1 वि अयसो ( प्रयस ) 1 / 1 वि अकित्ती (प्र-कित्ति ) 1 / 1 वि दुनामघेज्जं [ ( दुन्नाम) वि( घेज्ज) विधि-कृ 1 / 1 अनि ] च (प्र) = श्रोर पिहज्जणम्मि ( पिहुज्जण) 7/1 चुयस्स ( चुय) भूकृ 6 / 1 अनि धम्माश्रो ( धम्म) 5/1 अहम्मसेविणो [ ( अहम्म ) - ( सेवि ) 6/1] संभिन्नवित्तस्स
-
( भिन्नवित्त) 6 / 1 वि य ( अ ) मा हेट्ठयो (क्रिवि) नीचे की ओर गई (गइ) 1/1
चयनिका ]
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