Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ 87. सम्मविट्ठी (सम्मदिट्ठि) 1/1 वि सया (अ)- सदा अमूढे (अ-मूढ) 1/1 वि अस्थि (अ)=है. हु (अ) ही नाणे (नाण) 7/1 तवे (तव) 7/1 य (अ)=और संजमे (संजम) 7/1 तवसा (तव) 3/1 धुणई (धुण) व 3/1 संक पुराणपावगं [(पुराण) वि-(पावग) 2/1] मण-वय-कायसुसंवडे [(मण)-(वय)-(काय)-(सु-संवुड) 1/1 वि] जे (ज) 1/1 मवि स (त) 1/1 सवि भिक्खू (भिक्खु) 1/1 88. न (अ)=नहीं य (अ)=बिल्कुल वुग्गहियं (वुग्गहिय) 2/1 वि कहं (कहा) 2/1 कहेज्जा (कह) व 3/1 सक कुप्पे (कुप्प) व 3/1 सक निहुइंदिए [(निहुअ) + (इंदिए)] [निहुअ) वि-(इंदिन) 1/1] पसंते (पमंत) 1/1 वि संजमधुवजोगजुत्ते [(संजम)-(धुव)(जोग) (जुत्त) 1/i वि उवसंते (उवसंत) 1/1 वि प्रविहेडए (अविहेडअ) 1/1 वि जे (ज) 1/1 सवि स (त) 1/1 सवि. भिक्खू (भिक्खू) 1/1 89. हत्यसंजए [(हत्थ)-(संजय) 1/1 वि] पायसंजए [(पाय) (संजन) 1/1 वि] वायसंजए [(वाय)-(मंजअ) 1/1 वि] संजईदिए [(संजअ)+ (इंदिए)] [(संजन) वि-(इंदिए) 1/1] अझप्परए [अझप्प)-(रअ) 11 वि] सुसमाहियप्पा [(सुसमाहिय) + (अप्पा)] [सु-समाहिय) वि-(अप्प) 1/1] सुत्तत्थं [(सुत्त) + (अत्थं)] [(सुत्त)-(अत्थ) 2/1] च (अ)=तथा वियाणई* (वियाण) व 3/1 सक जे (ज) 1/1 सवि स (त) 1/1 सवि भिक्खू (भिक्खु) 1/1 * छन्द की माता की पूर्ति हेतु 'ई' को 'ई' को किया गया है। 90. अलोलो (अलोल) 1/1 वि भिक्खू (भिक्खु) 1/1 न (अ) नहीं रसेसु (रस) 7/2 गिद्धे (गिद्ध) 1/1 वि उंछ* (उंछ) 2/1 चरे* (चर) व 3/1 सक जीविय' (जीविय) मूल शब्द 2/1 नाभिकले चयनिका ]. [ 73 ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103