Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 93
________________ 81. विणए (विण) 7/1 सुए (सुप) 7/1 तवे (तव) 7/1 य (अ) =और आयारे (मायार) 7/1 निच्चं (म)=सदा पंडिया (पंडिय) प्रेरक 1/2 वि अभिरामयंति (अभिरम-→ अभिरामय) प्रेरक अनि व 3/2 सक अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 जे (ज) 1/2 सवि भवंति (भव) व 3/2 अक जिइंदिया (जिइंदिय) 1/2 वि 82. पेहेइ (पेह) व 3/1 सक हियाणसासणं [(हिय) + (अणुसासणं)] [(हिय) वि-(अणुसासण) 2/1] सुस्सूसई (सुस्सूस) व 3/1 सक तं (त) 2/1 सवि च (अ)=और पुणो (अ)=फिर अहिट्ठए (अहिट्ठ) व 3/1 सक न (अ)=नहीं य (अ)=तथा माणमएण [(माण)(मन) 3/1] मज्जई* (मज्ज) व 3/1 अक विणयसमाही (विणय)(समाहि) 1/1] आययटिए [(आयय) -(अट्ठिा) 1/1 वि] · पूरी या माधो गाथा के अन्त में प्राने वाली 'ई' का क्रियापदों में बहुधा ' हो जाता है (पिशल: प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 138)। 83. नागमेगग्गचित्तो [(ना) + (एगग्गचित्तो)] नाणं (नाण) 2/1 एगग्गचित्तो (एगग्गचित्त) 1/1 वि य (अ)=और ठिमो (ठिन) भूकृ 1/1 अनि ठावयई* (ठव-+ठावय) प्रेरक अनि व 3/1 सक परं (पर) 2/1 वि सुयाणि (सुय) 2/2 य (अ)=और अहिज्जित्ता (अहिज्ज) संकृ रो (रअ) 1/1 वि सुयसमाहिए [(सुय)-(समाहि) 7/1] __ * छन्द की माता की पूर्ति हेतु'ई' को 'इ' किया गया है । • समाहीए- समाहिए, विभक्तिं जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में हम्ब कर दिये जाते हैं । (पिशल: प्राकृत भाषानों का व्याकरण, पृष्ठ 182)। चयनिका ] [71

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