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(असाहु) 1/1 गेल्हाहि (गेण्ह) आज्ञा 2/1 सक साहुगुण [(साहू) -(गुण) मूल शब्द 2/2] मुंचसाहू [(मुंच) + (असाहू)] मुच (मुच) आज्ञा 2/1 सक. असाहू (असाहु)1/1 वियाणिया (वियाण) संकृ. अप्पगमप्पएणं [(अप्पगं)+ (अप्पएणं)] अप्पगं (अप्प)स्वार्थिक 'ग' 2/1 अप्पएणं (अप्प) 'अ' स्वार्थिक 3/1 जो (ज) 1/1 सवि राग-दोसेहि* [(राग)-(दोस) 3/2] समो (सम) 1/1 वि स (त) 1/1 सवि पुज्जो (पुज्ज) 1/1 वि * 'कारण' व्यक्त करने के लिए तृतीया या पंचमी का प्रयोग किया जाता है।
कभी-कभी तृतीया के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135) तथा वर्ग विशेष का बोध कराने के लिए
एकवचन तथा बहुवचन का प्रयोग किया जा सकता है। 8 पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 689। समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर परस्पर में हस्व के स्थान पर दीर्घ और और दीर्घ के स्थान पर हस्व हो जाते हैं, (यहां साहु → साहू हुआ है)
(हेम प्राकृत व्याकरण : 1-4)। $ पिशलः प्रा. भा. व्या, पृष्ठ 834.837,8381 * कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभाक्त का प्रयोग पाया
जाता है। (हम प्राकृत व्याकरण : 3-137) । 80. तहेव (अ)=उसी प्रकार उहरं (डहर) 2/1 4 (अ)-अथवा
महल्लगं (महल्ल) स्वार्थिक 'ग' 2/1 वा (अ)=अथवा इत्थी* (इत्थी) मूल शब्द 2/1 पुमं (पुम) 2/1 पन्वइयं (पव्वइय) 2/1 गिहि (गिहि) 2/1 वा (अ)-अथवा नो (अ)-नहीं होलए (हील) व 3/1 सक नो (अ)-नहीं वि (अ)-कभी य (अ) तथा खिसएज्जा (खिस--→ खिसय + खिसअ) प्रेरक अनि व 3/1 सक थंभं (थंभ) 2/1 च (अ)=और कोहं (कोह) 2/1 चए (च) व 3/1 सक स (स) 1/1 सवि पुज्जो (पुज्ज) 1/1 वि * किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है।
(पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517)।
प्रेरक
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( दशवकालिक