Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 90
________________ आसाययई* (आसाययइ) व 3/1 सक अनि स (त) 1/I सवि पुन्जो (पुज्ज) 1/1 वि * छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'ई' को 'इ' किया गया है। 74. सक्का* (सक्क) विधि कृ 1/2 अनि सहे* (सह) हेकृ पासाए (आसा)- 3/1 कंटया (कंटय) 1/2 अमओमया (अग्नोमय) 1/2 वि उच्छहया. (उच्हय) 5/1 स्वार्थिक 'य' नरेणं (नर) 3/1 प्रणासए (अण-आसा) 3/1 जो (ज) 1/1 सवि उ (अ)=किन्तु सहेज्ज (सह) व 3/1 सक कंटए (कंटा) 2/2 वईमए (वईमप्र) 2/2 वि कणसरे [(कण्ण)-(सर) 2/2] स (त) 1/1 सवि पुज्जो (पुज्ज) 1/1 वि. प्रायः हेत्वयं कृदन्त (कमणि अपं में) के साथ प्रयुक्त (Monier Williams, Sans.-Eng. Dict. P. 1045)। उच्छाह → उच्यह (यहां 'मा' का विकल्प से 'न' हुआ है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-67)। 'कारण व्यक्त करने के लिए तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है। ४ भणासाए → प्रणासए : विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में हस्व हो जाते हैं । (पिशलः प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 182)। 75. मुहत्तदुक्खा [(मुहुत्त)-(दुक्ख) 1/2 वि] हु (अ)=ही हवंति (हव) व 3/2 अक कंटया (कंटय) 1/2 मनोमया (अनोमय) 1/2 वि ते (त) 1/2 सवि वि (अ) तथा तो (अ)=वाद में सुउद्धरा (सुउद्धर) 1/2 वि वायादुरत्ताणि [(वाया)-(दुरुत्त) 1/2] दुरुद्धरारिण(दुरुद्धर) 1/2 वि बैरागुबंधोरिण [(वेर) + (अणुवंधीणि)] [(वेर)-(अणुवंघि) 1/2 वि महन्मयाणि (महन्मय) 1/2 वि 76. समावयंता (समावय) वकृ 1/2 वयणाभिधाया [(वयण)+ (अभिघाया)] [(वयण)-(अभिवाय)1/2] कणंगया [(कण्णं)* (गय) भूक 1/2 अनि] दुम्मरिणयं (दुम्मरिणय) 2/1 जणंति (जण) 68 ] [ दशवकालिक

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