Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 94
________________ 84. विविहगुणतवोरए [(विविह)-(गुण)-(तवीर) 1/1] य (अ)= तथा निच्चं (अ)=सदा भवद (भव) व 3/1 अक निरासए (निरासग्र) स्वार्थिक 'अ' 1/1 वि निज्जरदिए [(निज्जरा) + (अट्ठिए)] [(निज्जरा)-(अद्विन) 1/1 वि] तवसा (तव) 3/1 धुरणइ (धुण) व 3/1 सक पुराणपावगं [(पुराण)-(पावग) 2/1] जुत्तो (जुत्त) 1/1 वि सया (प्र)=सदा तवसमाहिए* ](तव)(समाहि) 7/1] * समाहीए → समाहिए, विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में हस्य फर दिये जाते हैं । (पिगलः प्राकृत भाषानों का व्याकरण पृष्ठ 182)। 85. जिणवयणरए [(जिण)-(वयण)-(रअ) 1/1 वि] अतितिणे (अ तितिरण) 1/1 वि पडिपुण्णाययमाययट्ठिए [(पडिपुण्ण) + (प्राययं) + (आयय) + (अट्ठिए)] [(पडिपुण्ण)-(प्राययं)* 2/1 'य' स्वार्थिक] [(आयय)-(अट्ठिअ) 1/1 वि] प्रायाग्समाहिसंवडे [(मायार)-(समाहि)-(संवुडे)1/1 वि] भवइ (भव) व 3/1 अक य (अ) = और दंते (दंत) 1/1 वि भावसंघए [(भाव)-(संघ) 1/1 वि] * कभी-कभी मप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वियीया विभविन का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137)। 86. अभिगम (अभिगम) मूल शब्द 3/1 चउरो (चउ) 2/2 वि समाहियों* (समाहि) 2/2 सुविसुद्धो (सुविसुद्ध) 11 वि सुसमाहियप्पो [(सुसमाहिय)-(अप्पन) स्वार्थिक 'अ' 1/1] विलहियसुहावहं [(विउल) वि-(हिय)--(सुहावह) 2/1 वि] पुणो ।अ)=तथा कुव्वद (कुव्व) व 3/1 सक सो (त) 1/1 सवि पपखेममप्पणी [(पयखेमं) + (अप्पणो)] पयखेमं (पयखेम) 2/1 अप्पणो (अप्प) 4/1 समाहीमोसमाहिमो, विभक्ति जुड़ते ममय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में हस्व कर दिये जाते हैं । (पिशलः प्राकृत भाषामों का व्याकरणपृष्ठ 182)। 72 ] [ दशवकालिक

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