Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 86
________________ [(अविरणीय) वि-(अप्प) 1/1] कटुं (कट्ठ) 1/1 सोयगयं [(सोय) -(गय) 1/1 वि] जहा (अ)-जैसे कि * छन्द को माता की पूर्ति हेतु 'इ' को 'द किया गया है। 64. विणयं* (विणय) 2/1 पि (प्र)=भी जो (ज) 1/1 सवि. उवाएण. (उवात्र) 3/1 चोइसो (चोप) भूक 1/1 कुप्पई (कुप्प) व 3/1 अक नरो (नर) 1/1 दिव्वं (दिव्व) 2/1 वि सो (त) 1/1 सवि सिरिमेजति [(सिरि) + (एजति)] सिरि (सिरी) 2/1 एज्जति स्वी (ए + एज्ज + एज्जत-→ एज्जंती) व 2/1 दंटेण (दंड) 3/1 पडिसेहए (पडिसेह) व 3/1 सक ___ * कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137)। .. छन्द की माता की पूर्ति हेतु 'ई' को '६ किया गया है। 65. तहेव (अ)=उसी प्रकार प्रविरणीयप्पा [(अविरणीय) + (अप्पा)] [(अविरणीय) वि-(अप्प) 1/2] उववझा (उववझ) 1/2 वि हया (हय) 1/2 गया (गय) 1/2 दीसंति (दीसंति) व कर्म 3/2 सक अनि दुहमेहंता [(दुई) + (एहंता)] दुह (दुह) 2/1 एहंता (एह) व 1/2 आमिमोगमुवट्ठिया [(आभियोगं) + (उवट्ठिया)] आभिप्रोगं* (माभिप्रोग) 2/1 उवडिया (उवट्ठिय) भूकृ 1/2 अनि * कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत भ्याकरण': 3-137)। 66. तहेव (अ)=उसी प्रकार सुविणीयप्पा [(सुविणीय) + (अप्पा)] [(सुविणीय)वि-(अप्प) 1/2] उववरमा (उववझ) 1/2 वि हया (हय) 1/2 गया (गय) 1/2 वीसंति (दीसंति) व कर्म 3/2 सक अंनि सुहमेहता [(सुहं)+ (एहंता)] सुह* (सुह) 2/1 एहंता (एह) वकृ [ दशवकालिक 64 ]

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