Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 85
________________ 61. मूलामो (मूल) 5/1 खंषप्पभवो [(संघ)-(प्पभव)* 1/1 वि] दुमस्स (दुम) 6/1 संघामो (खंघ) 5/1 पच्छा (अ)-बाद में समुर्वेति (समुवे) व 3/2 सक साला (साला) 2/2 साह (साहा) मूल शब्द 5/28 पसाहा (प्पसाहा) 1/2 विरहंति (विरुह) व 3/2 अक पत्ता (पत्त) 1/2 तमो (प्र)-बाद में से (त) 6/1 स पुफ्फं (पुफ्फ) 1/1. (प्र)=और फलं (फल) 1/1 रसो (रस) 1/l य (अ)-और * समास के अन्त में इसका अर्थ 'उत्पन्न होता है। यह विशेषण होता है। • साहा → साह पागे संयुक्त प्रभार पाने से दीर्घ का हस्व हुमा है (हेम प्राकृत व्याकरण, 1-84)। यहां मूल शब्द हो रहा है। किसी भी कारक के लिए मूल संशा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशल : प्राकृत भाषामों का व्याकरण : पृष्ठ 517) । a उत्पन्न होना या निकलना भयं में पंचमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। 62. एवं (म)=इसी प्रकार धम्मस्स (धम्म) 6/1 विणो (विण)1/1 मूलं (मूल) 1/1 परमो (परम) 1/1 वि से (त) 6/1 स मोक्खो (मोक्स) 1/1 जेण (अ)-जिससे कित्ति (कित्ति) 2/1 सुयं (सुय) 2/1 सग्धं (सग्घ) 2/1 वि निस्सेसं (निस्सेस) 2/1 वि चाभिगच्छई [(च) + (अभिगच्छई)] च (अ)=ौर. अभिगच्छई* (आभिगच्छ). व 3/1 सक * पूरी या माघी गाया के अन्त में माने वाली 'ई' का क्रियापदों में बहुधा '' हो जाता है। (पिएलः प्राकृत भाषानों का व्याकरण, पृष्ठ 138)। 63. जे (ज) 1/1 सवि य (अ)=और चंडे (चंड) 1/1 वि मिए (मित्र) . 1/1 वि थढे (थद्ध) 1/1 वि दुब्वाई (दुव्वाइ) 1/1 वि नियडीसो [(नियही) वि-(सढ) 1/1 वि] भई* (बुन्भइ) व कर्म 3/1 सक पनि से (त) 1/1 सवि प्रविनीयप्पा [(अविणीय) + (अप्पा)] चयनिका 1 .[63

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