Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 83
________________ 3/1 सक तस्संतिए [(तस्स) + (अंतिए)] तस्स (त). 6/1 स अंतिए (अंतिम) 7/1 वेणइयं (वेणइय) 2/1 पउंजे(पउंज) विधि 3/1 सक सक्कारए (सक्कार) विधि 2/1 सक सिरसा (सिर) 3/1 पंजलीप्रो (पंजलि) 5/1 काय (काय) मूल शब्द 3/1 गिरा (ग्गिरा) 3/1 अनि भो (अ)=ो! मणसा (मण) 3/1 य (अ)= तथा निच्चं (अ)=सदा * पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 672 । • प्रा. भा. व्या. पृष्ठ 683 । x प्रा. भा. व्या. पृष्ठ 6811 8 किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द का प्रयोग किया जा सकता है। (प्रा. भा. व्या., पृष्ठ 517)। 57. लज्जा (लज्जा) 1/1 दया (दया) 1/1 संजम* (संजम) मूल शब्द 1/1 बंभचेरं (बंभचेर) 1/1 कल्लाणभागिस्स [(कल्लाण)-(मागि) 4/1 वि] विसोहिठाणं [(विसोहि)-(ठाण) 1/1] जे° (ज) 1/2 सवि मे (अम्ह) 7/1 स गुरू (गुरु) 1/2 सययमणुसासयंति [(सययं) + (अणुसासयंति)] संययं. (अ)=सदैव अणुसासयंति (अणुसासय) प्रेरक अनि व 3/2 सक ते. (त) 2/2 सवि हं (अम्ह) 1/1 स गुरू' (गुरु) 2/2 सययं (अ)=सदैव पूययामि (पूययामि) व 1/1 सक अनि * कर्ता कारक के स्थान में केवल मूल संज्ञा शब्द भी काम में लाया जा सकता है। • यहाँ बहुवचन का प्रयोग सम्मान के लिए हुआ है। 8 कभी-कभी सप्तमी विभक्ति का प्रयोग द्वितीया के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135)। . 58. जहा (अ)=जैसे निसंते (निसंत) 7/1 तवरणच्चिमाली [(तवण) + (अच्चि)+ (माली)] [(तवण)-(अच्चि)-(मालि) 1/1 वि] ग्यनिका ] [61

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