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:52. बिया (अ)संभव हु (अ)=किन्तु से (प)-वाक्य को शोभा
पाक्य (पावय) मूल शब्द 1/I नो (अ)=न उहेज्जा (डह) विधि 3/1 सक मासोविसो (आसीविस) 1/1 वा (प्र)=अथवा कुविनो (कुविन) 1/1 विन (अ)=न भक्खे (भक्ख) विधि 3/1 सक विसं (विस) 1/1 हालहलं (हालहल) 1/1 मारे (मार) विधि 3/1 सक यावि (प्र) ही मोक्खो (मोक्ख) 1/1 गुरुहोलगाए [(गुरु)
स्त्री होलण--+हीलणा: 3/1] . कर्ता कारक के स्थान पर मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है।
(पिशलः प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 518) । * पिशल: प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 6241 B किसी कार्य का कारण व्यक्त करने के लिए तृतीया या पंचमी विभक्ति का
प्रयोग होता है। 53. जो (ज) 1/1 सवि पव्वयं (पन्वय) 2/1 सिरसा (सिर) 3/1
भेत्तुमिच्छ [(भेत्तु) + (इच्छे)] भेत्तु (भेत्तु) हेकृ अनि इच्छे (इच्छ) व 3/1 सक सुत्तं (सुत्त) भूक 2/1 अनि 4 (अ) अथवा सोहं (सीह) 2/1 परियोहएज्जा (पडिबोहा). प्रेरक अनि व 3/1 सक वा (अ) अथवा वए (दां) व 3/1 सक सत्तिप्रग्गे [(सत्ति)(अग) 7/1] पहारं (पहार) 2/1 एसोवमा सायगया [(एसा) + (उवमा) + (प्रासायणया)] एसा (एता) 1/1 सवि उवमा (उवमा) 11 प्रासायणा" (प्रासायणा-+प्रासायणया) 3/1 अनि गुरुण: (गुरु) 6/2 * 'इच्छा' अर्थ के साप हे का प्रयोग होता है। • बुध+प्रय (प्रेरक)-बोधय → बोहम→ बोहएज्जा ।
दा, दत्ते →दए। £ किसी वर्ग को बतलाने में एकवचन प्रथवा बहुवचन का प्रयोग किया जा
सकता है या बहुवचन का प्रयोग सम्मान प्रदशित करने के लिए भी
होता है। ॐ कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया
जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137) 1 .
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