Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 80
________________ इस प्रकार नच्चा (नच्चा ) संकृ अनि होलंति (हील) व 3 / 2 सक मिच्छं (मिच्छ ) 2 / 1 वि पडिवज्जमारा ( पडिवज्जमारण) वकु 1/2 करेंति (कर) व 3 / 2 संक आसायण ( श्रासारण ) * मूलशब्द 2 / 1 ते ( त ) 1/2 सवि गुरूणं (गुरु) 6/2 * किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है । (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517 ) · 58 ] किसी वर्ग को बतलाने के लिए एकवचन अथवा बहुवचन का प्रयोग किया जा सकता है । या बहुवचन 'का प्रयोग सम्मान प्रदर्शित करने के लिए भी होता है । 51. जा (ज) 1 / 1 सवि पावर्ग ( पावग ) 2 / 1 जलियमवक्क मेज्जा [(जलियं) + (अवक्कमेज्जा ) ] जलियं (जल) भूक 2/1 अवक्कमेज्जा (अवक्कम) व 3 / 1 सक श्रासीविसं (प्रासीविस) 2 / 1 वा (प्र) = अथवा वि ( अ ) पाद पूर्ति हु ( अ ) = पाद पूर्ति कोवएज्जा (कोवन) * प्रेरक अनि व 3/1 सक विसं (विस) 2 / 1 खायइ ( खाय) व 3 / 1 सक जीविट्ठी. [ ( जीविय) + (अट्ठी ) ] [ ( जीविय ) - (अट्ठि) 1 / 1 वि] एसोवमाssसायरया [ ( एसा ) + ( उवमा ) + ( श्रसायणया ) ] एसा ( एता ) 1 / 1 वि उवमा ( उवमा ) 1 / 1 श्रसायरणया (आसायरणा असायरणया) 3 / 1 अनि गुरूणं (गुरु) 6/2 * कुप् +अय (प्रेरक) कोपय कोवन कोवएज्जा । ● किसी वर्ग को बतलाने में एकवचन अथवा बहुवचन का प्रयोग किया जा जा सकता है या बहुवचन का प्रयोग सम्मान प्रदर्शित करने के लिए भी होता है । कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137) [ दशवैकालिक

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