Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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स्त्री ( विहर) विधि 3 / 1 ग्रक सोईनएण* [ ( सोध- (सोई ) - (मूल) नूकृ 3 / 1 पनि ] भरपणा * ( प्रप्पण) 3/1
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46. जाए (जा) 3 / 1 स सढाए (सदा) 3 / 1 निम्तो* (निक्रांत) श 1 / 1 पनि परियापट्टणमुत्तमं [ ( परियाय) + (ट्टा ) + (उत्तमं ) ] [ ( परियाय) - ( द्वारा ) * 2 / 1] 2 / 1 चि तमेव [ ( तं) + (एव) ] तं (त) 2 / 1
उत्तमं
(उत्तम) स अनुपालेज्जा (मपाल ) विधि
3 / 1सक गुणे ( गुण) 2 / 2 प्रायरियसम्मए [ ( प्रायरिय ) - ( सम्म) मूक 2/2 धनि ]
कभी-कभी सणमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पादा जाता है । (हम प्राकृत व्याकरण: 3-137 ) 1
56 ]
* यहाँ भूक का प्रयोग कर्तृवाच्य में हुआ है।
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'गति' प्रयं को क्रिया के साथ द्वितीया का प्रयोग हुपा है ।
47. तवं ( तय ) 21 चिमं [ (च) + ( इमं ) ] (प्र) और इम (इम) 2/1 सवि संजमजोगयं [ ( संजम ) - ( जोग ) 2 / 1 स्वाधिक 'य' प्रत्यय ] सम्झाथजोगं [ ( सज्झाय ) - ( जोग) 2 / 1] सपा (प्र) = सदा अहिट्ठए ( हिट्ठ) व 3 / 1 सक सूरे (सुर) 1 / 1 विव (प्र) = जैसे कि सेलाए (सेरणा ) 3 / 1 समत्तमाउहे [ ( समत्तं ) + (उहे ) ] समत्तं * (समत्त ) 2 / 1 वि श्राउ ( श्राउह) 1 / 1 अलमप्पणी [ ( प्रलं) + अप्पणो ) ] अलं (प्र) = समयं अप्पणी (अप्परण) 4 / 1 होइ (हो) व 3 / 1 प्रक परेसि (पर) 4/2
* कभी-कभी प्रथमा विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137 वृत्ति) ।
'मोर' प्रयं में 'च' कभी-कभी प्रत्येक शब्द के साथ प्रयुक्त किया जाता है ।
[ दशवैकालिक

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