Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 76
________________ 1/2 वि एए (एम) 1/2 सवि कसिणा (कसिण) 1/2 वि कसाया (कसाय) 1/2 सिचंति (सिंच) व 3/2 सक मूलाई (मूल) 2/2 • पुरणग्भवस्स (पुणभव) 6/1 39. राइणिएसु (राइणिन) 7/2 विणयं (विणय) 2/1 पउंजे (पटंज) विधि 3/1 सक धुवसीलयं [(धुव। वि-(सील) स्वार्थिक 'य' 2/1] सययं (अ)=सदा न (अ)=नहीं हावएज्जा (हाव) विधि 3/1 सक कुम्मो (कुम्म) 1/1 व्व (अ) की तरह अल्लीण-पलीणगुत्तो [(अल्लीण) वि-(पलीण) वि-(गुत्त) 1/I वि] परक्कमेन्जा (परक्कम) विधि 3/1 अक तव-संजमम्मि [(तव)-(संजम) 7/1] 40. निद (निद्दा) 2/1 च (अ)-बिल्कुल न (अ)=न बहु (क्रिविन) =अत्यधिक मन्नेज्जा (मन्न) विधि 3/1 सक सप्पहासं-संप्पहामं (संप्पहास) 2/1 विवज्जए (विवज्ज) विधि 3/1. सक मिहो (अ)= गुप्त रूप से कहाहि* (कहा) 3/2 न (अ) =न रमे (रम) विधि 3/1 अक सज्झायम्मि (सन्झाय) 7/1 रनो (रअ) 1/1 वि सया (अ)-सदा * कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया . जाता है । (हम प्राकृत व्याकरण : 3-137) । 41. इहलोग-पारतहियं [(इहलोग)-(पारत) वि-(हिय) 1/1] जेणं (अ)-जिसके द्वारा गच्छइ (गच्छ) व 3/1 सक सोग्गई (सोग्गइ) 2/1 बहुसुयं (बहुसुय) 2/1 वि पन्जुवासेज्जा (पज्जुवास') विधि 3/1 सक पुच्छेज्जन्यविणिच्छयं [(पुच्छेज्ज) + (अत्थ) + (विणिच्छयं)] पुच्छेज्ज (पुच्छ)* विधि 3/1 सक [(अत्य)(विणिच्छय) 2/1] • • * 'पुच्छ द्विकर्मक क्रिया है। • पर्युपास् (पज्जुवास)=आश्रय लेना । (माप्टे : संस्कृत-हिन्दी कोश, पृष्ठ 167)। 54 ] [ दशवकालिक

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