Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 74
________________ 32. प्रमोहं (अमोह) 2/1 वि वयणं (वयण) 2/1 कुन्जा (कु) विवि 3/1 सक पायरियस (आयरिय) 6/1 महप्परगो (महप्पण) 6/1 तं (त) 2/1 सवि परिगिज्म (परिगिज्म) संक अनि वायाए* (वाया) 7/1 कम्मुणा' (कम्म) 3/1 उववायए (उववाय) विधि 3/1 सक * 'कम्म' के रूपों में थोड़ी विशेषता होती है। (दोशी: प्राकृतमार्गोपदेशिका, पृष्ठ 180)। कभी-कभी द्वितीया के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पागदाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135) । मयुवं (अधुव) 2/1 वि जीवियं (जीविय) 2/1 नच्चा (नच्चा) संकृ अनि सिद्धिमग्गं [ (सिद्धि)-(मग्ग) 2/1] वियाणिया (वियाण) संकृ विणियट्टज (विरिणयट्ट) विधि 3/1 अक भोगेसु* (भोग) 712 आउं (आउ) 2/1 परिमियमप्पणो [(परिमियं) + (अप्पणो)] परिमियं (परिमिय) 2/1 वि अप्पणो (अप्पण) 6/1 * कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग पाया जाता है। हिम प्राकृत व्याकरण : 3-136) । 34. जरा (जरा) 1/1 जाव (अ)-जव तक न (अ) नहीं पीलेइ (पील) व 3/1 सक वाही (वाहि) 1/1 वड्ढई* (वड्ढ) व 3/1 अक जाविदिया [(जाव)+ (इंदिया)] जाव (अ) जब तक. इंदिया (इंदिय) 1/2 हायति (हाय) व 3/2 अक ताव (अ)-तब तक धम्म (धम्म) 2/1 समायरे (समायर) विधि 3/1 सक * पूरी या प्राधी गाथा के अन्त में पाने वाली 'इ' का क्रियापदों में हो जाता है । (पिशल: प्रा. भा. व्या., पृष्ठ 138)। 52 ] [ दशवकालिक

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