Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
विधि 3 / 1
•
29. न ( अ ) = नहीं बाहिरं ( बाहिर) 2 / 1 वि परिभवे (परिभव) सक प्रत्ताणं ( अत्तारण ) 2 / 1 समुक्कसे (समुक्कस) विधि 7 / 1] मज्जेज्जा ( मज्ज) अनि तवसि * (तवसि ) मूल
3/1 सक सुयलामे [ ( सुय ) - ( लाभे)
( जच्चा )
6/1
·
विधि 3 / 1 अक जच्चा शब्द 6/1 वि बुद्धिए
(बुद्धि) 6 / 1
(विशेषरण भी) काम में लाया जा
* किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द सकता है । (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) अपभ्रंश में पष्ठी में भी मूल शब्द ही काम में लाया जाता है ।
विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में हृस्व हो जाते हैं । (पिशल: प्रा. भा. व्या. पृष्ठ 182) ।
30. से (त) 1 / 1 सवि जारणमजाणं [ ( जाणं) + (अजाणं)] जाणं (त्रिवि) = ज्ञानपूर्वक अजार* (क्रिवित्र) = अज्ञानपूर्वक वा ( अ ) = अथवा कट्टु ( अ ) = करके या कट्टु ( कट्टु ) संकृ अनि आहम्मियं ( हम्मिय) 2 / 1 वि पयं ( पय) 2 / 1 संवरे ( संवर) विधि 3 / 1 सकखिष्पमप्पा [ ( खिप्पं ) + (अप्पा)] खिप्पं ( अ ) = तुरन्त अप्पारणं (अप्पारण) 2/1 बीयं ( 7 ) = दूसरी वार तं (त) 2 / 1 सवि न ( अ ) = न समायरे ( समायर) विधि 3 / 1 सक
* जाणं, प्रजाणं नपुंसक लिंग एक वचन में प्रयुक्त हैं, इसलिए इन्हें क्रिविन कहा गया है । इन्हें 'नि' वर्तमान कृदन्त एक वचन भी माना जा सकता है, किन्तु प्रथं क्रिविग्र मानने से ठीक बैठता है ।
31. अणायारं (अरणायार ) 2 / 1
परक्कम्म (परक्कम्म) संकृ अनि नेव (अ) = कभी न गृहे (गृह) विधि 3 / 1 सक न ( अ ) = नहीं निहवे ( निण्हव) विधि 3 / 1सक सुई (सुइ) 1 / 1 विसया
| = सदा वियडभावे
[ ( वियड ) - (भाव) 7 / 1] (जिइंदि) 1 / 1 वि
( अ ): (असत) 1 / 1 वि जिदिए
असंसते
चयनिका ]
[ 51

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103