Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 72
________________ (भूय) 6/2 तम्हा (अ) इसलिए मोसं (मोस) 2/1 विवज्जए (विवज्ज) विधि 3/1 सक 26. चित्तमंतमचितं [(चित्तमंतं) + (अचित्तं)] चित्तमंतं (चित्तमंत),2/1 अचित्तं (प्रचित्त) 2/1 वा (प्र) =या अप्पं (अप्प) 2/1 वि वा (प्र) =या जइ वा (अ)- भले ही बहुं (बहु) 2/1 वि दंतसोहणमेतं [(दंत)-(सोहण) वि-(मेत्त) 2/1] पि (प्र)= भी भोग्गहें* (प्रोग्गह) - 2/1 सि (अस) व 2/1 अक प्रजाइया (प्र-जाय) संकृ कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया। जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 27. न (म)==नहीं सो (त) 1/1 सवि परिग्गहो (परिग्गह) 1/1 वृत्तो (वृत्त) भूकृ 1/1 अनि नायपुत्तेण (नायपुत्त) 3/1 ताइणा (ताइ) 3/1 वि मुच्छा (मुच्छा) 1 परिगहों* (परिग्गह) / वृत्तो* (वुत्त) भूक 1/1 अनि इइ (प्र) =इस प्रकार वृत्तं (वृत्त) भूकृ 1/। अनि महेसिणा (महेसि) 3/1 ___ * एक वाक्य में यदि स्त्रीलिंग और पुल्लिग शब्द है तो किया पु. के अनुसार होगी। 28. परिक्खभासी [(परिक्ख) संकृ अनि-(भासि) 1/1 वि] सुसमाहिइदिए [(सुममाहिप्र) + (इंदिए)] [(सु-समाहिअ) भूक अनि-(इंदिन) 1/1] चउक्कसायावगए [(चउ) + (क्कसाय) + (अवगए)] [(चउ) वि-(क्कसाय)-(अवग) भूकृ 1/! अनि] परिणस्सिए (अपिस्सिम) 1/1 वि स (त) 1|| सवि निद्धणे (निद्धरण) व 3/1 सक धुणमलं [(धुण्ण) वि-(मल) 2/1] पुरेकर (पुरेकड) 2/1 वि पाराहए (पाराह) व 3/1 सक लोगमिणं [(लोग) + (इणं)] लोगं (लोग) 2/1 इणं (इम) 2/1 सवि तहा (अ)=और परं • (पर) 2/1 वि [ 50 [ दशवकालिक

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