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वि (प्र) = निश्चय ही अहं (अम्ह) 1/1 स पि (अ)=भी तीसे (ती)6/1 स इच्चेव (अ)=इस प्रकार ताओ (ता) 5/1 स विणएज्ज (वि - पी + वि -गएज्ज) विधि 3/1 सक अनि रागं (राग)
2/1
4. पायावयाही* (आयावय) प्रेरक अनि विधि 2/1 सक चय (चय)
विधि 2/1 सक सोगुमल्ल (सोगुमल्ल) 2/1 कामे (काम) 2/2 कमाही* (कम) विधि 2/1 सक कमियं (कम) भूक 1/1 खु (अ)= निश्चय ही दुक्खं (दुक्ख) 1/1 छिदाहि* (छिंद) विधि 2/1 सक दोसं (दोस) 2/1 विणएज्ज (वि-णी+विणएज्ज) विधि 2/1 सक अनि राग (राग) 2/1 एवं (अ)-इस प्रकार सुही (सुहि) 111 वि होहिसि (हो) भवि 2/1 अक संपराए (संपराअ) 7/1
प्रातप (अय) आतापय → पायावय । * यहाँ रूप बनना चाहिए-पायावयहि, पर कभी-कभी विधि में अन्त्यस्थ प्र
(य) के स्थान पर मा (या) हो जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-158) इसी प्रकार 'रिदाहि' मोर 'फमाही' हैं। यहां छन्द की माता की पूर्ति हेतु 'हिं को ही किया गया है।
5. कहं (अ)= कैसे चरे (चर) विधि 3/1 सक कहं (अ)=कैसे चिट्ठ
(चिट्ठ) विवि 3/1 अक कहमासे [(कहं। + (आसे)] कहं (अ)= कैसे. प्रासे (पास) विधि 3/1 अक कह (अ) कैसे सए (सम) विधि 3/1 अक कहं (अ)=किस प्रकार भुजंतो (भुज) व 1/1 भासंतो (भास) व 1/1 पावं (पाव) 2/1 वि कम्मं (कम्म) 2/1 न (अ) =नहीं बंधई (वंध) व 3/1 सक
पुरी गाथा के अन्त में पाने वाली 'ई' का क्रियापदों में वहुधा 'ई' हो जाता है। (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138)।
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