Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 69
________________ (प्रोन्भतर) + (वाहिर)] [(स)-(अभितर) वि-(बाहिर) 2/1 वि] 16. जया (अ)=जब संवरमुक्कट्ठ [(संवरं) + (उक्कट्ठ)]संवरं (संवर) 2/1 उक्कट्ठ (उक्कट्ठ) 2/1 वि धम्म (धम्म) 2/1 फासे (फास) व 3/1 सक प्रगुत्तरं (अणुत्तर) 2/1 वि तया (अ)=तव धुरगइ (धुण) व 3/1 सक कम्मरयं [(कम्म)-(रय) 2/1] अवोहिकलुसं [(अबोहि) वि-(कलुस) 2/1] कडं (कड) भूक 2/1 अनि 17. जया (अ) जव धुणइ (धुरण) व 3/1 सक कम्मरयं [(कम्म) (रय) 2/1] प्रचोहिकलुसं [(अवोहि) वि-(कलुस) 2/1] कर्ड (कड) भूक 2/1 अनि तया (अ)-तब सम्वत्तर्ग' (सव्वत्तन) 2/1 वि नाणं (नाण) 2/1 दसणं (दंसरण) 2/1 चाभिगच्छई [(च)+ (अभिगच्छई)] च (अ) = और अभिगच्छई* (अभिगच्छ) व 3/1 सक * पूरी या माघी गाथा के अन्त में भाने वाली 'ई' का क्रियापदो में 'ई' हो जाता है। (पिशलः प्रा. भा. व्या., पृष्ठ 138) . सध्यत्तग (सर्वत्रग) सर्वव्यापी (Omnipresent) Monier Williams, Dict. P. 1189. 18. जया (अ)=जव सव्वत्तगं* (सव्वतग) 2/1 वि नारणं (नाण) 2/1 दंसणं (दंसरण) 2/1 चाभिगच्छई [(च)+(अभिगच्छई)] च (अ) और अभिगच्छई (अभिगच्छ) व 3/1 सक तया (अ) = तव लोगमलोगं [(लोगं) + (अलोगं)] लोगं (लोग) 2/1 अलोगं (अलोग) 2/1 च (अ) =और जियो (जिण) 1/1 जाणइ (जाण) व 3/1 सक केवली (केवलि) 1/1 वि गाथा 17 देखें। • पूरी या प्राधी गाथा के अन्त में पाने वाली 'ई' का क्रियापदों में 'ई' हो जाता है । (पिशल प्रा. भा. व्या., पृष्ठ 138)। चयनिका ] [47

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