Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 66
________________ 6. जयं (क्रिवित्र)-जागरूकतापूर्वक चरे (चर) विधि 3/1 सक चिट्ठ (चिट्ठ) विधि 3/1 अक जयमासे [(जयं) + (प्रासे)] जयं (क्रिवित्र) -जागरूकतापूर्वक. आसे (पास) विधि 3/1 अक सए (संघ) विधि 3/1 अक भुजंती (मुज) व 1/1 भासंतो (भास) वकृ 1/1 पावं (पाव) 2/1 वि कम्मं (कम्म) 2/1 न (अ) = नहीं बंधई (वंध) व 3/1 सक • पूरी गाया के अन्त में आने वाली 'ई' का क्रियापदों में बहुधा '६ हो जाता __ है। (पिशलः प्राकृत भाषामों का व्याकरण पृष्ठ, 138)। 7. सव्वभूयऽप्पभूयस्स [ (सव्व) + (भूय) + (अप्प) + (भूयस्स).] [(सव्व)-(भूय)*-(अप्प)-(भूय)• 6/1x वि] सम्मं (अ)= अच्छी तरह से भूयाई (भूय) 2/2 पासपो (पास) .1/1 वि पिहियासवस्स [(पिहिय) + (आसवस्स)] [(पिहिय) मूक अनि -(प्रासव) 6/1] दंतस्स (दंत) भूक 6/1 अनि पावं (पाव) 2/1 वि कम्मं (कम्म) 2/1 न (अ)=नहीं बंधई (वंध) व 3/1 सक . * भूय प्राणी • भूय (वि)=समान. कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया या पंचमी के स्थान पर पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) । * कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) । 8 पूरी गाथा के अन्त में आने वाली 'इ' का क्रियामों में 'ई' हो जाता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138) । है. पढम (अ)=सर्वप्रथम नाणं (नाण) 21 तमो (अ)बाद में क्या (दया) 1/1 एवं (अ)=इस प्रकार चिट्ठइ (चिट्ठ) व 3/1 अक सम्वसंजए [(सव्व)-(संजन) 1/1 वि] अन्नाणी (अन्नाणि) 1/1 44 1 [ दशवकालिक

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