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व्याकरणिक विश्लेषण
1. धम्मो (धम्म) 1/1 मंगलमुक्किट्ठ [(मंगल) + (उक्किट्ठ)] मंगलं
(मंगल) 1/1 उक्किट्ठ (उक्किट्ठ) 1/1 वि अहिंसा (अहिंसा) 1/1 संजमो (संजम) 1/1 तवो (तव) 1/1 देवा (देव) 1/2 वि (अ)
=भी तं (त) 2/1 स नमसंति (नमंस) व 3/2 सक जस्स (ज) - 6/1 स धम्मे (धम्म) 7/1 सया (अ)=सदा मणो (मण) 1/1 2. जे (ज) 1/1 सवि य (अ)=और कंते (कंत) 2/2 वि पिए (पिन)
2/2 वि भोए (भोर) 212 लद्धे (लद्ध) 2/2 वि विप्पिट्टि (विप्पिट्ठि) मूल शब्द 2/1 कुन्वई (कुव) व 3/1 सक साहीरणे [(स) + (अहीणे)] [(स) - (अहीण) 2/2 वि] चयई* (चय) व 3/1 सक भोए (भोर) 2/2 से (त) 1/1 सवि हु (अ)=ही चाइ (चाइ) मूल शब्द 1/1 वि ति (अ)=इस प्रकार उच्चई (वुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि • पद्य में किसी भी फारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है।
यह नियम विशेषण के लिए भी काम में लाया जा सकता है । (पिशल:
प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 517) * छन्द की माता की पूर्ति हेतु 'ई' को 'ई' किया गया है । ६ पूरी या आधी गाथा के अन्त में माने वाली 'ई' क्य क्रियामों में बहुधा 'ई'
हो जाता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138)।
स्त्री
3. समाए (सम---समा) 7/1 वि पेहाए (पेहा) 7/1 परिव्वयंतो
(परिव्वय) वकृ 1/1 सिया (अ)= कभी मणो (मण) 1/1 निस्सरई (निस्सर) व 3/1 अक बहिद्धा (अ)=वाहर न (अ) =नहीं सा (ता) 1/1 सवि महं (अम्ह) 6/1 स नो (अ)=नहीं • छन्द की माता की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है।
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[ दशवकालिक