Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 53
________________ 73. (जो) चटोरा नहीं (है), नजरबंदी के काम करने वाला नहीं (है), (जो) निष्कपट (है), (जो) चुगुली खानेवाला नहीं (है) तथा (जिसका) व्यवहार दोनता-रहित (है), (जो) (स्वयं का) प्रदर्शन नहीं करता है और (जो) कभी नहीं (चाहता है) (कि) (वह) (दूसरों के द्वारा) प्रदर्शित व्यक्ति (होवे), और (जो) (कभी) मजाक नहीं (करता है), वह सदा पूज्य (होता है)। 79. (व्यक्ति) सुगुणों के कारण साधु (होता है), (और) दुर्गुण समूह के कारण ही असाधु । (अतः) (तुम) साधु (बनने) के लिए सुगुणों को ग्रहण करो (और) (उन दुर्गुणों को) छोड़ो (जिनके कारण) (व्यक्ति) असाधु (होता है) । (समझों) जो (व्यक्ति) प्रात्मा को आत्मा के द्वारा जानकर राग-द्वेष में समान (होता है), वह पूज्य (है)। 80. (जो) साधु की अथवा गृहस्थ की, उसी प्रकार (जो) वालक की अथवा बड़े की, स्त्री की अथवा पुरुप की (स्वयं) निन्दा नहीं करता है तथा (दूसरों से) कभी निन्दा नहीं करवाता है एवं (जो) अहंकार और क्रोध को छोड़ देता है, वह पूज्य है । 81. जो इन्द्रिय-विजयी होते हैं, (वे) बुद्धिमान (व्यक्ति) सदा अपने को विनय, श्रुत, तप और आचार में तत्परता से लगाते हैं । (जो) मोक्ष (परम शान्ति) का इच्छुक (व्यक्ति) (है) (वह) हितकारी शिक्षण को चाहता है, उसको सनता है और फिर (उसका) अभ्यास करता है तथा जो) किमाभी सहकाररुपी मादकता से पागल नहीं होता है, (उसके अनुवैत में) विनय-साधना (होती है । परिपहरण संख्या • चयनिका ] [31 . .... . ... .. .. . ... ..

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