Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 33
________________ 25. निस्संदेह जगत में झूठ बोलना सब साधुओं (पवित्रात्माओं) द्वारा निन्दित (है) । (झूठ बोलने से) मनुष्यों में (झूठ बोलने वाले के प्रति) बिल्कुल भरोसा नहीं (रहता है)। इसलिए (व्यक्ति) झूठ बोलने को छोड़े। बहुत या भले ही थोड़ी सचित्त या अचित्त (दूसरों की) (वस्तु) को (तथा) दाँत स्वच्छ करने वाली (सींक) के बराबर भी (अन्य की) (वस्तु) को बिना मांगकर (तू) (यदि) लेने में (तत्पर) है, (तो अनुचित है)। 26. 27. (प्राणियों के) उपकारी महावीर के द्वारा वह (संयम और . लज्जा की रक्षा. के लिए आवश्यक) (वस्तु) परिग्रह नहीं कही गई (है) । मूर्छा परिग्रह कही गई (है)। इस प्रकार (यह) महर्षि, (महावीर) द्वारा कहा गया है । 28. (जो) सोच-समझकर बोलने वाला (है), (जिसका) इन्द्रिय - समूह अत्यन्त शान्त (है), (जिसके द्वारा) चारों कषाएँ नष्ट कर दी गई (हैं), (जो) आसक्ति-रहित (है), वह पूर्व में किए हुए पाप रूपी मैल को, दूर कर देता है, (और) (इस तरह से) (वह) इस लोक और पर (लोक) की भक्ति करता है अर्थात् अपने इस लोक और परलोकं को सुधारता है। 29. (व्यक्ति) बाह्य (दूसरे) का तिरस्कार न करे, अपने को ऊँचा न दिखाए, ज्ञान का लाभ होने पर गर्व न करे, (तथा) जाति का, तपस्वी (होने) का (और) बुद्धि का (गर्व न करें)। चयनिका 1 | 11

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