Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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43. दिट्ठ मियं श्रसंदिद्ध पडिदुष्णं वियं जियं । पिर- मणुविग्गं भासं निसिर अत्तयं ॥
44. विसएस मणुष्णेसु पेमं नाभिनिवेसए ।
45. योग्गलाण परीणामं तेसि णच्चा जहा तहा । विणीयतहो विहरे सोईभूएण अप्पणा ||
afणच्चं तेसि विष्णाय परिणामं पोग्गलाण य ॥
46. जाए सद्धाए निक्वंतो परियायद्वाणमुत्तमं । तमेव श्रणुपालेज्जा गुणे श्रायरियम्मए ॥
47. तवं चिमं संजमजोगयं च
48.
16 ]
सज्झायजोगं च सया श्रहिए । सूरे व सेणाए समत्तमाउहे
श्रलमप्पणी होइ श्रलं परेसि ||
सज्झाय-सज्झाणरयस्स ताइणो
पावभास् तवे रयस्स । विसुज्भई जं से मलं पुरेकर्ड समीरियं रूप्पमलं व जोइणा ॥
[ दशर्वकालिक

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