Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 49
________________ 39. जैसे अंकुश के द्वारा प्रेरित दुष्ट हाथी रथ को आगे चलाता है, इसी प्रकार दुर्बुद्धि (शिष्य) कर्तव्यों को कहा हुआ, कहा हुआ (ही) करता है। 70. अविनीत के (जीवन में) अनर्थ (होता है) और विनीत के (जीवन में) समृद्धि (होती है), जिसके द्वारा यह दोनों प्रकार से जाना हुया (है), वह (जीवन में) विनय को ग्रहण करता है। 71. जो भी (कोई) मनुप्य अति क्रोधी (है), चुगलखोर (है), उतावला है, (जिसके) बुद्धि (और) वैभव का अहंकार (है), (जिसका) प्रयोजन निन्दनीय (है), (जिसके द्वारा) धर्म नहीं समझा गया (है), (जो) विनय में निपुण नहीं (है), (जो) (यश यादि को) वांटनेवाला नहीं (है), उसके लिए निश्चय ही परम शान्ति नहीं (है) । 72. इसके विपरीत जो (आध्यात्मिक) गुरु की आज्ञा में स्थित (हैं), (जो) विनय में निपुण (हैं), (जिनके द्वारा) धर्म (कर्तव्य) और परमार्थ सुने हुए (हैं), वे कर्म-समूह को नष्ट करके (तथा) इस दुस्तर (कठिनाई से पार किए जाने वाले) संसार को पार करके सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त हुए हैं। 13. (जो) प्राचार को (ग्रहण करने के लिए विनय को संपन्न करता है, जैसा कि (गुरु के द्वारा) कहा गया है (उसको) चाहते हुए (उसके) कथन को ग्रहण करके तथा (गुरु की) सेवा में उपस्थित रहते हुए (आध्यात्मिक) गुरु की अवजा नहीं करता है, वह पूज्य (है)। चयनिका । [ 27

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