Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 14
________________ हुए भी मूल्य - जगत में जीने लगता है । उसका मूल्य-जगत में जीना धीरे-धीरे गहराई की ओर बढ़ता जाता है। वह श्रव मानव मूल्यों की खोज में संलग्न हो जाता है । वह मूल्यों के लिए ही जीता है और समाज में उनकी अनुभूति बढ़े इसके लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है । यह मनुष्य की चेतना का एक-दूसरा ग्रायाम है । 1 दशवैकालिक में चेतना के इस दूसरे ग्रायाम की सवल अभिव्यक्ति हुई है । इसका मुख्य उद्देश्य एक ऐसे समाज की रचना करना है, जिसमें मनुष्यों एवं मनुष्येतर प्राणियों को मारना व उनको मरवाना दोनों ही समाप्त हो जाएँ (२२) | सभी प्राणियों में जीने की इच्छा इतनी वलवती होती है कि कोई भी प्राणी किसी भी स्थिति में मरना नहीं चाहता है (२३) । इसलिए किसी भी प्रकार का वध उचित नहीं कहा जा सकता है । दशवेकालिक ने हिंसा की पराकाष्ठा को ही दृष्टि में रख कर प्राणियों को न मारने व उन्हें न मरवाने की ओर हमारा ध्यान केन्द्रित किया है । व्यक्तिगत स्तर पर हत्याएँ तथा राष्ट्रों के स्तर पर युद्ध मारने व मरवाने के ही व्यापक रूप हैं | सौन्दर्य प्रसाधन, आहार, आर्थिक विकास तथा वैज्ञानिक प्रयोगों के नाम पर मनुष्येतर प्राणियों को मारना व उन्हें मरवाना दशवैकालिक को मान्य नहीं है । वह अविकसित सामाजिक जीवन की विवशता हो सकती है, पर उपादेय नहीं कही जा सकती है । सामाजिक जीवन कुछ इस प्रकार का होता है कि समाज में व्यक्तिगत स्तर पर या समूह के स्तर पर कई वार संघर्ष की स्थितियाँ खड़ी हो जाती हैं। इन संघर्षो को मिटाने के लिए ऐसे रास्ते खोजे जाने चाहिए जहाँ जीवन लीला समाप्त करने वाली पद्धतियों का ही अन्त हो जाए । मारने व मरवाने के साधन रूप में आणविक और प्रणाणविक हथियारों पर होने वाले खर्च को यदि गरीबी, भुखमरी, रोग और अशिक्षा को मिटाने के लिए लगा दिया [ चयनिका xiv ]

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