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प्रस्तावना
-पं० हीरालाल जी शास्त्री मागमों के सम्बन्ध में श्वेताम्बर-परम्परा में दो मान्यताएं प्रचलित हैं
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक-परम्परा-११ अङ्ग, १२ उपांग, ४ मूल. २ चूलिकामूत्र, ६ छेद सूत्र और १० प्रकीर्णक–यों ४५ आगम मानती है ।
श्वेताम्बर स्थानकवासी व तेरापंथी-परम्परा ११ अंग, १२ उपाग, ४ मूल, ४ छेद, १ आवश्यक यों ३२ आगमों को प्रमाणभूत मानती है।
दशवकालिक-४ मूल आगमों में उत्तराध्ययन, दशवकालिक, नंदीसूत्र व अनुयोगद्वार आते हैं। दशवकालिक की संरचना आर्य शय्यंभव ने की है और यह श्वेताम्बर-परम्परा का आचारविषयक अत्यन्त उपयोगी तथा महत्वपूर्ण संकलन है। इसके आज तक अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं जो प्राकृत-संस्कृत टीकाओं तथा हिन्दी अर्थ-विशेषार्थ के साथ हैं । इनमें विशालकाय संस्करणों से लेकर मूलमात्र के लघु संस्करण भी सम्मिलित हैं । यह सूत्र जैन-परम्परा में सर्वाधिक प्रचलित है और प्रायः सभी साधु-साध्वी एवं अनेक वैरागीजन दीक्षित होने के पूर्व या पश्चात् इसको पढ़कर कण्ठस्थ रखते हैं एवं तदनुसार चलने का प्रयत्न करते हैं । निर्माण-काल से ही यह साधुजनों का सम्मान्य एवं अत्यन्त प्रिय ग्रन्थ रहा है। रचनाकाल के पश्चात् इस पर अनेक चूणियां, टीकाएँ, टब्बा और टिप्पण लिम्वे गये हैं। उनमें से कुछ का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
१. नियुक्ति- भद्रबाह द्वितीय ने दशवकालिक पर सर्वप्रथय नियुक्ति लिखी। यह पद्यात्मक है और इसकी गाथाओं का परिमाण ३७२ है। इसका रचना-काल विक्रम की पांचवी-छठी शताब्दी है।
२. भाष्य - यह पद्यात्मक व्याख्या है । इसकी भाष्य-गाथाएं केवल ६३ हैं । चर्णिकार अगस्त्यसिंह ने अपनी चणि में इसका कोई उल्लेख नहीं किया है। पर टीकाकार हरिभद्रसूरि ने भाष्य और भाष्यकार का अनेक स्थलों पर उल्लेख किया है । अतः इसकी रचना नियुक्तिकार के बाद और चूर्णिकार के पूर्व हुई है ।