Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
होत्था; नेच्छइणं विजए खत्तिए ममं णामंवा गोयंवा गिण्हित्सए किमंगपुणं दसणंवा : परिभोगेवा; तं सेयं खलु ममं एवं गभं बहुहिं गब्भसाडणाहिय, पाडणाहिय, गालणाहिय मारणाहिय, साडित्तएवा पाडित्तएवा गालित्तएवा मारित्तएवा,एवं संपेहेइ२त्ता बहुणि खाराणिय, कडयाणिय, तूबराणिय, गब्भसाडणाणिय,पाडणाणिय,गालणाणिय, मारणाणिय खायमाणी पियमाणी इच्छइ, तंगभं साडित्तएवा पाडित्तएवा गालीतएवा । भारितएवा, णो चेवण से गम्भे सडंइवा पडइवा गलइवा मरइवा ॥ तएणं सा मिया
देवी आहे णो संचाए तंगभं साडत्तएवा पाडत्तएवा गालेत्तएवा मरित्तएवा तहेव अप्रिय भमनोज्ञ हुइ हूं यावत् मन में भी अच्छी लगती नहीं हूं, विजय क्षत्रीराजा मेरा नाम गोत्रसुनना भी चहाते नहीं हैं, तो मुझे आँखों से देखना यावत् भोगोपभोगना तो द्रहीरहा, इसलिये मुझे श्रेयकारी हे कि मैं इस गर्भ को औषधोपचार करके सहावं पडायूं गला मारू, जिस प्रकार यह गर्भ सडें पढे गले मरे एसा उपचार करूं, इस प्रकार विचार कर अनेक प्रकार के क्षारे कडुये तूर इत्यादि गर्भपात की औषधी यों खाती हुई पीती हुई इच्छने लगी की यह गर्भ मडो पडो गलो मरो, परन्तु वह गर्भ किसी भी उपचार कर सहा नहीं पडा नहीं गला नहीं मरा नहीं ॥ ५८ ॥ तब उस मृगावती देवी का उप गर्भ को सडाने पहाने गालने मारने का कुछ भी उपाव चला नहीं, तब मन में अत्यन्त खदित हो दुःख. धारन करने लगी.
३.काशक-गजाबहादुर खला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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