Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
अर्थ
ॐ अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषी
बहुपडिण्णाणं दारगं व्याया ॥ २२ ॥ एणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायमे तंत्रसगडम टुओ वेइ २ ता दोन गिण्हावेइ २ ता अणुपुत्रेणं सारक्खइ, संगो संइ, जहा उज्झिया सुभद्दे लवणे कालगया से विगिहाओ णिछूडे ॥ २३ ॥ तएण से सगडेदारए साओ गिहाओ गिछूडे समाणे, सिंघाडगं तहेव जाव सुदंसणाए गणिए सद्धिं संपलम्यावि होत्या २४ ॥ तएवं से सुसंण अमचे तं सगडं दारगं अण्णाकयाइ सुदरसिणाए गणियाएं गिहाए णिछूभाइ २ ता सुदर्रिसणं गणियं भद्रा सार्थवाहीनी एकदा प्रस्तावे नव महीने प्रतिपूर्ण होने से बालक का जन्म दिया ? ॥ २२ ॥ तत्र उस बालक के माता पिता जन्मते ही बालक को गांडे के नीचे रखा कर रख तुर्त उठा लिया, अनुक्रममे रक्षण करती हुई गोपवती हुई दुग्धादि पानकरा वृद्धि करती हुई इत्यादि सब अधिकार दूमरे अध्ययन में उज्झित कुमारका कहा तैसा इसका भी सब जानना. विशेष में गाडे के नीचे रख उठालिया, इसगुण निष्पन्न इस का { नाम शकट कुमार दिया यावत् सुमद्र सार्थवाही समुद्र में काल माप्त हुबे, अनुक्रमसे वह पतिके शोग से भद्रा (सार्थवाहीनी भी मृत्युनाई, कोतवाल करजदारको घर सुपरतकर शकट बालकको घर से निकाल दिया, ॥२३॥ तब वह शकट कुमार निराधार निरंकुश हुन भटकता फिरता सुदर्शना गणिका सेलुब्ध बना||२४|| तब वह सुसेन नामे प्रधान अन्यदाकिसी वक्त उस शकट कुमारको सुदर्शना वैश्या के घर से निकाल कर, सुदर्शना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
● मकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाषजी ज्वालाप्रसादजी
१३
www.jainelibrary.org