Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 200
________________ सूत्र अर्थ 4: अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक जी हथिणारे सिंघाडग जाब पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवं आइक्खंइ घण्णेणं देवाप्पिए! सुमुहेणं गाहाबइ जाव तंघण्णेण देवाणुप्पिए ! सुमुहे गाहा ॥ १९ ॥ तणं से सुमुहेगाहाइ बहुहिंवाससयाई आउयंपालइ २त्ता कालमासे कालंकिच्चा इहेत्र हत्थिसिय यर अदीणसत्तुस्सरण्णां धारिणी देवीं कुच्छिसि पुत्तत्ता उवण्णा ॥ २० ॥ तणं सा धारिणी देवी सघणिजांस सुत्तजागरा आहीरमाणी २ Jain Education International दुंदुभी का नाद हुवा और आकाश में रहे हुवे देवों महादानम् २ ऐसा निर्घोष शब्द करने लगे. हस्तिनापुर नगर के श्रृंगाटक पंथ में श्रीवट चौवट यावत् महापंथ में बहुत लोगों मिल २ कर परस्पर बात करने लगे। कि है देवानुप्रिया ! सुमुख गाथापतिको घम्य है, कि जिसने इसप्रकार उत्तम प्रकार का दानदिया ऐमे उत्तम सांधु को प्रतिलाभ इसलिये धन्य है सुमुख गाथापति को ! ॥ १९ ॥ तब फिर सुमुख गाथापति बहुत वर्ष का आयुष्य पालकर काल के अवसर में काल पूर्णकर, इस ही जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र के इसे { हो हस्तिशीर्ष नगर में अदीन शत्रु राजा की धारनी रानी के कूंक्षी में पुत्रपने उत्पन्न हुवा ॥ २० ॥ तब धारनी देवीने सुख शैय्या में सुती हुई कुछ निद्रा में कुछ जाग्रत इपत्निद्रा आते तैसे ही पूर्वोक्त प्रकार केशरीसिह का स्वम अवलोकन किया और अधिकार सब पूर्वोक्त प्रकार जानना यावत् पादों पर सुख · For Personal & Private Use Only * प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेव महायजी ज्वालामसादजी ११० (www.jainelibrary.org

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