Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 209
________________ न अर्थ 48 एकादशांग विपाक सूत्र का द्वितीय श्रुतस्कन्ध उसुपारेणयरे- उसभदत्ते गाहावई, पुप्फदत्तेअणगारे पडिलाभे, माणुस्साउनिबडे, इहउप्पण्णे, जाव महाविदेहे सिज्झिर्हिति ॥ सुहविवागे तइयं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३॥ चउत्थरस उक्खवओ ॥ विजयपुरंणयरं, णंदणवणं उज्जाणे, असोगोजक्खो, वासवद तेराया, कण्हदेवी, सुवास कुमारे, भद्दा मोक्खं पंचसयादेवी ॥ जाव पुव्वभवो कोसंबीणयरी धण्णपा'लो राया, वेसमण भद्दे अणगारे पडिला भिए, इहं जावसिडे ॥ चउत्थअज्झयणं सम्मत्तं ॥ ४ ॥ पंचमस्स उक्खोवओ || सोगंधियां णयरी, णीलासोग उज्जाणे, सुकालो जक्खो, वासवदत्त आयुबन्धकर उत्पन्न दुवा] यावत् महाविदेह क्षेत्र में सिद्धबुद्ध मुक्त होगा ।। इति सुजात कुमार का तीसरा अध्ययन ॥३॥ चौथा अध्ययन का उक्षेप | विजयपुर नगर, नंदनवन उद्यान, आशोक यक्ष. ( राजा कृष्णादेवी रानी, सुवास कुमार, भद्रा प्रमुख पांचमो कन्या के सात पानी ग्रहण कराया || पूर्वभव - कोसंबी नगरी धनपाल राजाने वैभ्रमण भद्र अनगार को प्रतिलाभे, यहां ( उत्पन्न हुवा, यावत् महाविदे क्षेत्र में सिद्ध होगा ॥ इति सुवास कुमार का चौथा अध्ययन संपूर्ण ॥ ४ ॥ पंचत्रा अध्ययन का उक्षेप – सौगन्ध का नगरी, नीलाशोक उध्यान, सुकाल यक्ष, अप्रतिहत राजा, { सुकृष्णादेषी रानी, महाचन्द्र कुमार, उसके अरहदत्त भारिया. जिसका जिनदास पुत्र, तीर्थकर पधारे ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only 40 सुखविपाक का ३-२ अध्ययन- सुबाहुकुमार का १९९ www.jainelibrary.org

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